07 अप्रैल, 2011

गांधीवादी सोच में लिपटे अन्ना, नहीं ‘आसान पहेली’...



अन्ना, अन्ना हजारे, अन्ना हजारे और लोकपाल बिल। भई क्या माजरा है ये...? कुछ दिनों से यही सुनने और पढ़ने को मिल रहा है। मोबाइल फोन और ईमेल पर द्वारा भी अन्ना हजारे और उनके लोकपाल बिल के संबंध में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है। चलिए, तो हम आप को कागजों से अलग अन्ना हजारे से मिलवाते है। ‘अन्ना हजारे’ यानी भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे भारत के ‘एक आम नागरिक’ हैं, वे एक ‘सामाजिक कार्यकर्ता’ भी है। वैसे उनके व्यक्तित्व में ऐसा कुछ खास नहीं जिन्हंे फिल्मी अंदाज में बताया जा सके, मगर उनके व्यक्तित्व में वो गांधीवादी भाषा और आचरण के दर्शन जरूर होते हैं, जिनके बल पर 6 दशक पहले भारत को आजादी मिली थी। इनके द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘लोकपाल विधेयक’ पास करवाने के साथ-साथ इसमें आम लोगों को जागरूक होकर भागीदार बनाने और भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचारियों को उखाड़ फेंकने के लिए ‘अमरण अनशन’ करने का ठोस कदम उठाया है और इसी से आप और हम प्रभावित हो सकते हैं। कहा जा सकता है। अंग्रेजों की गुलामी तो हमें 64 साल पहले मिली थी, लेकिन अब अपने देश को भ्रष्टता और भ्रष्टाचारियों से आजाद कराने के लिए इस नए क्रांतिकारी का नाम आने वाले समय में लिया जा सकता है। शायद इतनी जानकारी अन्ना हजारे के बारे में काफी है। राजनीति में फैलती गंदगी और छींटाकशी में मशगूल राजनीतिज्ञ अपनी आम दिनचर्या में बिजी हैं, जबकि आप और हम अपने रोजमर्रा के नियमित कामों में व्यस्त है। वहीं दूसरी और भ्रष्टता और भ्रष्टचारियों की जड़े पूरे देश में फैल चुकी हैं। रोज कोई ना कोई घोटाले उजागर होते हैं, देश की निम्न स्थिति को दर्शाते आंकड़े भी आए दिन देखने, सुनने और पढ़ने को मिल ही जाते है। देश में आम जनता का जिक्र बस गरीबी, कुपोषण, निरक्षरता, भुखमरी और बेरोजगारी को लेकर होता है ...
आज जब हम आधुनिकता की सीढि़यों को चढ़ते हैं तो गर्व करते हैं कि हम भारतवासी हैं, हम उस देश का हिस्सा है जिसका लोहा दुनिया मानती है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर देश हमारा साथ पाना चाहता है, क्योंकि कहीं ना कहीं इस स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय शक्ति जरूर मानती होंगी की भारत के पास तन, मन और सबसे खास धन तो बहुत है। इसी का प्रमाण है स्विस बैंकों में हमारे देश अरबों खरबों रूपया पड़ा है, जिसे हमारे देश बड़े पेट वाले सफेदपोश भ्रष्टाचारियों ने छिपा कर रहा है। देश के वासी, देश का पैसा, देश से वसूला, देश से ही लूटा और छिपाया विदेशी बैंकों में? इतनी हिम्मत आम लोगों में नहीं हो सकती। सीधी सी बात है जब तक ‘सफेद लाइट’ का ‘सिग्नल’ ना तब तक पैसों की गाड़ी आगे नहीं चल सकती। खैर, बात की ज्यादा गहराई में ना जाते हुए बस यही कहना चाहती हूं कि जागरूकता और पहल ऐसे दो हथियार है जिससे बड़े से बड़े पहाड़ को काटा जा सकता है, शायद अन्ना हजारे देश में जल्द-जल्द ये दो हथियारो की धार तेज करने को तैयार हैं। चलिए, मुद्दा अच्छा, वजह ठोस और और समस्या का समाधान भी जरूरी है। इसीलिए अन्ना हजारे को ‘भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों’ पर विजय प्राप्त हो, इसके लिए उन्हें बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. आप का बिलाग काफी अच्छा लगा

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  2. सुन्दर ..अन्ना ने हमे घरों से बहार निकलकर इस व्योस्था से लड़ने का तरीका और संबल दिया है..
    अगर आज नहीं तो फिर कई सौ बरसों तक इन नामर्द नेताओं के गुलाम बने रहना पड़ेगा..
    आइये अन्ना को समर्थन दे कर अपना भविष्य प्रकाशमान करें..

    सुन्दर विषय चयन के लिए बधाइयाँ..
    जय हिंद

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  3. AAP KA BAHUT BAHUT SHUKRIYA SIR... WAISE EK BAAT HAI NAYI PIDI KO AAP MAHATMA GANDHI JI KO JINDA NA DEKHNA KA MALAL NAHI HOGA, KYUKI ANNA HAJARE KE ROOP MAI HUME GANDHI JI MIL GAYE HAI.. KYUN SAHI KAHA NA..

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