06 अप्रैल, 2011

बड़े दिल वालों का छोटा बड़-बोलापन...?


भारत ने वल्र्ड कप क्या जीता कि सभी की जागते हुए तो दूर बल्कि सोते हुए भी नींद को घुन लग गया है, ऐसा मैं नहीं कह रही हूं बल्कि ऐसा तो वो कह रहे हैं जिन्होंने पाकिस्तानी क्रिकेट कप्तान शाहिद अफरीदी और श्रीलंकाई राष्ट्रपति के दोगलेपन और बड़बोलेपन को सुना और पढ़ा है। ताजा उदाहरण अभी सुर्खियों में बना हुआ है कि ‘‘शाहिद अफरीदी ने कहा है कि भारत और भारत के लोगों का दिल बहुत छोटा, जिसके कारण उनके साथ लम्बे रिश्ते बनाने में बहुत परेशानी होती है। अल्लाह ने भारत वालों को इनता बड़ा और साफ दिल नहीं दिया, जितना की हम पाकिस्तानियों को दिया है।’’ हम अफरीदी की भावना को ठेस ना लगाते हुए बस ये कहना चाहती हूं कि शायद, शाहिद अफरीदी ने कभी कबीर दोहों पर गौर नहीं फरमाया है, अगर इन्हांेने इनपर कभी थोड़ा सा भी गौर फरमाया होता, उनका पता होता था कि मुंह मियां मिट्ठू बनाने से कोई भी अपने बड़े दिल और बड़ी सोच वाला नहीं दिखता। जैसे की कबीर के दोहे में कहा गया है

कि-ः ‘‘बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलया कोए।
      जो दिल खोजा आपना, मुझसे से बुरा ना कोए’’।।
   इस दोहे को आप और हम एक साधुवाद नजरिए से सोचते हैं, लेकिन इसे हम एक सामाजिक सांचे में भी ढाल सकते हैं। शायद इसी नजरिए को ध्यान में रखते हुए ‘हम भारतीय अपनी कमी या गलती को सामने से खुद मान लेते हंै और उपलब्धियों का बखान करने में भी हिचकते हैं।’ वो बात अलग है कि अब हमारे देश की मीडिया इस सामाजिक सोच और साधुवाद सोच से थोड़ा आगे निकल आई है ये दोनों काम वो बाखूबी कर लेती है। जिसके कारण उसे भी अफरीदी की बड़-बोलेपन का शिकार होना पड़ा। वैसे यहां पर थोड़ा सा भारतीय मीडिया को दोषी ठहराया जा सकता है। वाकई वल्र्ड कप को लेकर भारतीय मीडिया ने कुछ ज्यादा ही मिर्च-मसाला लगाया और खेल भावना से खेले जाने वाले खेल को ‘भारत और पाक के बीच महासंग्राम आज’ और ‘आज बजेगा लंका का डंका’ जैसी हेडलाइन का जमकर इस्तेमाल किया। भाई क्या जरूरत है इस तरह तिल का ताड़ बनाने की। खैर, ये बात तो हुई हमारी कमी की। पर ये क्या अभी हमें अपनी एक कमी का एहसास ही हुआ था कि श्रीलंका ने भी कुछ अफरीदी टाइप कमंेट कर दिया है, जरा आप भी सुनिए भला माजरा क्या है? दरअसल, श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे का कहना है कि ‘‘भारत को वल्र्ड कप जीत की खुशी श्रीलंका की वजह से मिली है, क्योंकि श्रीलंका की 2 करोड़ जनसंख्या ने भारत की 1 अरब 21 करोड़ जनता को कुछ पल खुशी के देना चाहती थी। इसीलिए श्रीलंका वल्र्ड कप से एक कदम पीछे हट गई।’’ चलो भई, भला हो श्रीलंका का कि उनसे भारत के लिए इतना बड़ा कदम उठाया और इसी के साथ पाक कप्तान को कहना चाहूंगी की सीखो, सीखो अफरीदी कुछ श्रीलंका के खिलाडि़यों, सरकार और जनता से कुछ सीखो। इसे कहते हैं बड़कपन और बड़ा दिल। जो हमें खुशी देने के लिए फाइनल मैच में हारने की इच्छा लेकर मैदान पर उतरे थे। मगर ये क्या, इस सारे किए कराए पर श्रीलंका राष्ट्रपति महिंद्र राजपक्षे ने पानी फेर दिया! भई, क्या जरूरत थी कि इस तरह से खुलेआम ये कहने की श्रीलंकाई टीम ने भारत की खुशी के लिए इनता बड़ा त्याग किया है। 
  क्या क्रिकेट के करोड़ो प्रशंसक और दर्शक देख नहीं सकते कि श्रीलंका ने भारत को किस तरह से प्रोत्साहित किया था? क्या उन्हें दिखाई नहीं दिया था जब 275 रनों का पीछा करते महेंद्र सिंह धोनी ने जीत हासिल करने वाला आखिरी छक्का जड़ा था तो श्रीलंकाई टीम के चहेरे पर कैसी रौनक आई थी? और दिल से निकल गया था कि ‘‘देखो, देखों हमारी इतनी कोशिशों के बाद भारत आखिर जीत ही गया।’’ क्यों राजपक्षे जी आप यहीं कहना चाह रहे थे ना ?  ऐसा मैं नहीं बल्कि वहीं करोड़ों दर्शकों और प्रशंसकों का कहना है...?   खैर, अब मैं अपने बड़-बोलेपन का ज्यादा इस्तेमाल ना करते हुए यही कहना चाहूंगी कि हर खेल में किसी एक की ही जीत निश्चित है, अगर आप और हम अपनी जीत को तहेदिल से अपनाते हैं तो अपनी हार को भी उतनी सहजता से अपना लेना चाहिए। अब ये कोई साधुवाद सोच नहीं, बल्कि सच है कि ‘‘जब आप अपनी हार किसी और के सिर मढ़ते हो तो सभी को पता चल जाता है कि कमी किसकी है और कहां पर है ?’’ क्यूँ  मैंने सही कहा ना ?  

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