tag:blogger.com,1999:blog-10979546626345236932024-03-14T11:45:36.798-07:00kuch khaas to nahi...नमस्कार जी,
मैं हूं अंजू सिंह, अभी तक का बस मेरा परिचय इतना ही है। मेरा ब्लाग जैसे नाम से पता चल गया होगा ‘कुछ खास तो नहीं’ बस यही सच है। साधारण सोच के साथ लिखना शुरू किया है और साधारण सोच को शब्दों में बदलना चाहती हूं। सामाजिक और जनचेतना से जुड़े सवालों पर सवाल करना मुझे पसंद है। स्वभाव से कुछ कठोर और बातों से लचीली हूं, फिर भी सबकी सोच को सुनना मुझे रास आता है। अगर आप मेरे लेख को झेल पाएं तो मेरी लेखनी को दम मिलेगा और नहीं झेल पाए तो मुझे और साधारण रूप से लिखने का दम भरना पड़ेगा...Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-62302911730880870512011-04-25T08:48:00.000-07:002011-04-25T08:49:44.887-07:00श्रद्धा के नाम पर ये कैसा मायाजाल?<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiF4TPLup11ZHUTgpTLxyId0uXgdh3LpGKFtiC3FebvsLLQeOlKhnFFE_qrtvxOk1UfKn7lSY9JN7YTcmg_rxPRP-2mhxvOLVW8LaJjSfhRontjs4ehZxaR3hpyVxhMcnKfTb6hOhAr4BeJ/s1600/1.jpg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="320" width="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiF4TPLup11ZHUTgpTLxyId0uXgdh3LpGKFtiC3FebvsLLQeOlKhnFFE_qrtvxOk1UfKn7lSY9JN7YTcmg_rxPRP-2mhxvOLVW8LaJjSfhRontjs4ehZxaR3hpyVxhMcnKfTb6hOhAr4BeJ/s320/1.jpg" /></a></div><br />
भोली सूरत दिल के खोटे, नाम बड़े और दर्शन छोटे... ऐसा मेरे लिखने का विचार तो बिलकुल भी नहीं था, पर लिखने पर मजबूर हूं। संभव है कि यह लेख विवादों का आधार बन सकता है... पर जो मैंने देखा और अनुभव किया है जरा आप भी ये अनुभव करके देखो... 24 अप्रैल 2011 को करीब एक महीने शारीरिक बीमारी को झेलते हुए अध्यात्मिक गुरू सत्य साईं ने आखिरी सांस ली, आमतौर पर किसी भी साधारण या असाधारण व्यक्ति का निधन होना कभी भी खुशी का विषय नहीं हो सकता है, लेकिन वो कुछ सवालों, जवाबों और विवादों का मामला जरूर बन जाता है। बस कुछ ऐसा ही लग रहा है सत्य साईं बाबा का मामला ? वैसे तो बाबा अपने श्रद्धालुओं के बीच काफी चर्चित हैं, लेकिन कुछ समय से इनके चर्चाओं का बाजार खूब तेज चल रहा है। कभी इलाज, कभी अस्पताल, कभी दवाई और कभी उनपर पर सबकुछ बेकार...! देश-विदेश में रहने वाले लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र माने जाने वाले सत्य साईं बाबा के अंतिम सांस लेने के साथ दुःखभरी और नमीभरी आह भी देशभर में निकल गई। क्या नेता? क्या अभिनेता? क्या खिलाड़ी और क्या आम जनता? ज्यादातर श्रद्धालुओं का कहना है कि ‘बाबा सत्य साईं के निधन को देश की बहुत बड़ी हानि है।’ वैसे गजब का शोक था कि सभी न्यूज चैनलों पर बाबा ही बाबा छाए रहे... अब देखिए कुछ ऐसा ही होता है ‘ह्यूमन नेचर’! <br />
दरअसल, सत्य साईं बाबा मीडिया के संग-संग आम लोगों के बीच इतने चर्चा आ रहे थे कि आम लोगों के बीच मेरी मानसिकता भी कुछ ऐसी हो रही थी। इसके चलते मुझे उत्सुकता हुई कि बाबा के बारे में कुछ और जानकारी जुटाई जाए... यानी उनके व्यक्तित्व और चमत्कार के कुछ दर्शन कर लिए जाएं... सो मैं बैठ गई नेट पर और बाबा से संबंधित कुछ नोट्स और वीडियो खोजने। अब इसे मेरी अच्छी किस्मत कहें या बुरी, क्योंकि पहली वीडियो देखी तो लगा कि जो मैं इतने दिनों से सोच रही थी वो वास्तव में इतना सच्चा नहीं जितना कि उसे दिखाया और बताया जा रहा है। अब मुझे ये तो नहीं पता कि वो वीडियो के साथ किसी ने खुरापात की है या नहीं ? पर जो उसमें दिखा उसपर पर सजह विश्वास किया जा सकता है... मात्र एक वीडियो ने सभी सवालों पर और भी सवाल खड़े कर दिए कि ‘‘वाह रे भारत और वाह रे भारतवासी!’’ वाकई हम भारतीय आस्था के मामले में बहुत भावनात्मक है। उस वीडियो में साफ दिखाया गया है कि बाबा ने किस तरह बार-बार अपने हाथों की सफाई का इस्तेमाल किया है, इससे तो यह भी पता चलता है कि बाबा के पास कोई शक्ति नहीं बल्कि हाथों की सफाई और नजर को धोखा देने का मंत्र हैं। वे गजब के जादू प्रदर्शनकारी हैं, बेहद बढि़या अंदाज और मामूली फेरबदल करके सबकी आंखों में धूल झोंक रहे थे और किसी को कुछ पता ही नही... <br />
खैर, छोड़ो ये सवाल बहुत हुए और अब हम रूख करते है कुछ ऐसे सवालों की ओर जिससे कि बाबा के श्रद्धालुओं की नाराजगी होना लाजिमी है... माना वह साईं बाबा के अवतार है, तो इन आधुनिक सत्य साईं बाबा के पास हजारों करोड़ की संपत्ति कहां से आई! माना उन्होंने कई अस्पताल, स्कूल और संस्थाएं बनवाएं, फिर भी आम जनता की सेवा में भला करोड़ों की आमदनी और उसकी बचत कैसे संभव है! चलो ठीक है, साईं के अवतार हैं, पर हैरानी है कि खुद को साईं का अवतार करने वाले सत्य साईं ने साईं जैसी जीवन शैली नहीं अपनाई! चर्चा तो इस बात की भी ज्यादा है कि बाबा बचपन से ही चमत्कार करते थे, हवा से तरह तरह के चमत्कारों से श्रद्धालुओं को चकित किया है, अपने छोटे से मुंह से औसतन बड़े-बड़े सोने के अंडानुमा सोना उगलते हैं, हाथों से गोल-गोल घुमाकर विभूति और सोने की चेन तक निकालते हैं। मगर बाबा ने अपने इस चमत्कार यानी सोना उगलने वाली शक्ति का बस मीडिया में छाने का तरीका बनाया ना कि गरीबों की गरीबी दूर करने का रास्ता बनाया! आप जरा सोचो, सच्चे साईं बाबा तो सबके अंदर अपने आप को देखते थे और हर प्राणी उनके लिए साईं था, मगर यहां तो उल्टा है। भाई साहब, ये सत्य साईं तो अपने आप को साईं बोल रहे हैं...! अब और क्या क्या कहूं जरा नीचे लिखी कुछ इन पक्तियों भी थोड़ा गौर करिये... <br />
<br />
<b>सोचो और समझो...</b><br />
एक ‘साईं बाबा’ रहे जीवन भर बस एक ‘फकीर’<br />
जबकि ‘सत्य र्साइं बाबा’ बने आज के ‘अमीर’... <br />
एक सांई का घर मात्र रहा ‘द्वारका माई’<br />
जबकि दूसरे के ‘वास में खूब वैभवता’ छाई...<br />
एक ने ‘सबका मलिक एक है’ का गान गाया...<br />
जबकि दूसरे ने खुद को ही ‘साईं ’ बताया...<br />
एक साईं ने ‘अपनी-मृत्यु’ खुद की बताई पाई<br />
जबकि सत्य साईं ने ‘वक्त’ से पहले ली विदाई...<br />
एक ने अपनी विरासत में छोड़ी ‘श्रद्धा और सबूरी’<br />
जबकि दूसरे की विरासत रह गई बिना ‘अधिकारी’...<br />
<br />
<b>देखिए, माफी चाहती हूं उन सत्य साईं बाबा के श्रद्धालुओं से जो इनकी श्रद्धा करते हैं। किसी की भावना को ठेस लगाने का मेरा कोई विचार नहीं था। मैं भी शक्ति पर विश्वास करती हूं, लेकिन खुद की नंगी आंखों से देखी गई शक्ति पर ही विश्वास किया जाए तो बेहतर है।</b>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-7100842240633479532011-04-11T02:41:00.003-07:002011-04-11T02:41:32.416-07:00राजनीति-भ्रटाचार भाई-भाई है, ‘प्लीज, कुछ ना बोले’ ?<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-y3k6FhJPn-c/TaLMFdqPTuI/AAAAAAAAAEU/gU_IDcJXaco/s1600/corruption.jpg" imageanchor="1" style="clear:left; float:left;margin-right:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="310" width="320" src="http://1.bp.blogspot.com/-y3k6FhJPn-c/TaLMFdqPTuI/AAAAAAAAAEU/gU_IDcJXaco/s320/corruption.jpg" /></a></div>हमारे देश में सब कुछ है, बस थोड़ी सी परेशानी ये है कि आम आदमी महंगाई से परेशान, रोजगार में नाकाम, कुपोषण से ग्रस्त, गरीबी से बेहाल और शिक्षा से अब भी बड़ी संख्या बेजार है, बाकी सब ठीक -ठाक है...! वैसे बेचारा देश भ्रष्टाचार में जकड़ हुआ है, घोटालों ने देश की जनता को नींबू की तरह निचोड़ रखा है बस... और सब एक दम दुरूस्त है कुछ परेशानी नही...! क्यों सही कहा न...! लगता है आप थोड़ा सा भ्रमित हो गए हैं? आप सोच रहे हैं कि पता नहीं मैं क्या कहना चाह रही हूं...! दरअसल मैं अपने देश और अपने देश की आम स्थिति को समझने की कोशिश कर रही हूं। नेताओं की बातें समझने की कोशिश कर रही हूं कि वो आखिर कहना क्या चाह रहे हैं? मतलब, अभी-अभी अन्ना हजारे ने जिस तरह से देश में होते भ्रष्टाचार की नाक में नकेल डालने की कोशिश की वह वाकई तारीफ के लायक है। मानना पड़ेगा कि मात्र पांच-छह दिन में इस ‘आमरण अनशन’ व ‘जनलोकपाल बिल’ को पास करवाने के लिए भारतीयों का जो समर्थन मिला वह कमाल का था और कहीं ना कहीं देश को इस तरह के आंदोलन की जरूरत तो ‘खल’ रही थी। <b>जहां अन्ना हजारे के साथ आम आदमी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘हल्ला बोल’ रहे हैं, वहीं कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी कहना चाहते है कि ‘‘अन्ना जी, राजनीति और भ्रष्टाचार हैं भाई-भाई प्लीज, कुछ ना बोले..?’’ मतलब उनका कहना है कि ‘‘राजनीति बिना भ्रष्टाचार के नहीं चल सकती, यानी राजनीतिक पार्टियों को चलाने के बहुत ज्यादा धन की जरूरत होती है और उस धन की कमी को भ्रष्टाचार से ही पूरा किया जाता है। इनका यह भी कहना है अगर इस समय गांधी जी भी होते तो वो भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं होते, जिसके कारण वे भ्रष्टाचार कर राजनीति करते या फिर राजनीति छोड़ देते...!’’ वैसे इन्होंने इतना कहने के बाद ‘इस बात का आशय गलत समझे जाने पर इस पर सफाई भी दी है। मगर इस बात में सच्चाई तो है, मुझे ये तो नहीं पता की आप इस बात से सहमत है या नहीं, पर मैं तो सहमत हूं!</b><br />
देखिए, राजनीति में भ्रष्टाचार की जरूरत तो है, राजनीति कोई बच्चों का खेल तो नहीं, जो बस आभासी खिलौने भर से खेलकर मन को खुश कर दे! राजनीति कोई देश सेवा भी नहीं है जो कर्म की बुनियाद पर देश के हित में सोचे और आम जनता के दिलों पर राज करे! और हां, राजनीति आप की अपनी गृहस्थी भी नहीं है जिसमें आप मर्यादा, संस्कार, सुविधा, जरूरत और समृद्धि का<br />
देश के हित में सोचा है। आज की आधुनिक सेवाभाव सोच यानी राजनीति से वो कोसो दूर रहे, शायद इसलिए भ्रष्टाचार करने की जरूरत नहीं पड़ी होगी! अगर देश के नेता और सरकार वाकई इस गांधीवादी सेवा भाव को अपना लें, तो भ्रष्टाचार तो अपने अपने आप ही खत्म होने लगेगा, नहीं तो राजनीति की इधर-उधर की चालों में भ्रष्टाचार भी अपने आप छिपाने की जगह ढूंढ ही लेगा...!Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-60686382946451386642011-04-09T11:19:00.000-07:002011-04-09T11:19:37.075-07:00कुछ ख़ास तो नही...: गांधीवादी सोच में लिपटे अन्ना, नहीं ‘आसान पहेली’...<a href="http://kuchkhastonahi.blogspot.com/2011/04/blog-post_07.html">कुछ ख़ास तो नही...: गांधीवादी सोच में लिपटे अन्ना, नहीं ‘आसान पहेली’...</a>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-79049616645622888482011-04-07T02:34:00.000-07:002011-04-07T02:34:25.655-07:00गांधीवादी सोच में लिपटे अन्ना, नहीं ‘आसान पहेली’...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtNFAXgn5ZM9waD94SELh2HXJ-BcT0zwXd-lUwpZZR1DRG-gd90pZo01XYYL85qxFKhx767d-P06vG3xZazaNZGx3mf6V26xeAgvtDAjbnnl0JRs_ZAldOq7I3Hpf2EILMVeSmyhWEBt6m/s1600/anna.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtNFAXgn5ZM9waD94SELh2HXJ-BcT0zwXd-lUwpZZR1DRG-gd90pZo01XYYL85qxFKhx767d-P06vG3xZazaNZGx3mf6V26xeAgvtDAjbnnl0JRs_ZAldOq7I3Hpf2EILMVeSmyhWEBt6m/s1600/anna.jpg" /></a></div><br />
अन्ना, अन्ना हजारे, अन्ना हजारे और लोकपाल बिल। भई क्या माजरा है ये...? कुछ दिनों से यही सुनने और पढ़ने को मिल रहा है। मोबाइल फोन और ईमेल पर द्वारा भी अन्ना हजारे और उनके लोकपाल बिल के संबंध में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है। चलिए, तो हम आप को कागजों से अलग अन्ना हजारे से मिलवाते है। ‘अन्ना हजारे’ यानी भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे भारत के ‘एक आम नागरिक’ हैं, वे एक ‘सामाजिक कार्यकर्ता’ भी है। वैसे उनके व्यक्तित्व में ऐसा कुछ खास नहीं जिन्हंे फिल्मी अंदाज में बताया जा सके, मगर उनके व्यक्तित्व में वो गांधीवादी भाषा और आचरण के दर्शन जरूर होते हैं, जिनके बल पर 6 दशक पहले भारत को आजादी मिली थी। इनके द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘लोकपाल विधेयक’ पास करवाने के साथ-साथ इसमें आम लोगों को जागरूक होकर भागीदार बनाने और भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचारियों को उखाड़ फेंकने के लिए ‘अमरण अनशन’ करने का ठोस कदम उठाया है और इसी से आप और हम प्रभावित हो सकते हैं। कहा जा सकता है। अंग्रेजों की गुलामी तो हमें 64 साल पहले मिली थी, लेकिन अब अपने देश को भ्रष्टता और भ्रष्टाचारियों से आजाद कराने के लिए इस नए क्रांतिकारी का नाम आने वाले समय में लिया जा सकता है। शायद इतनी जानकारी अन्ना हजारे के बारे में काफी है। राजनीति में फैलती गंदगी और छींटाकशी में मशगूल राजनीतिज्ञ अपनी आम दिनचर्या में बिजी हैं, जबकि आप और हम अपने रोजमर्रा के नियमित कामों में व्यस्त है। वहीं दूसरी और भ्रष्टता और भ्रष्टचारियों की जड़े पूरे देश में फैल चुकी हैं। रोज कोई ना कोई घोटाले उजागर होते हैं, देश की निम्न स्थिति को दर्शाते आंकड़े भी आए दिन देखने, सुनने और पढ़ने को मिल ही जाते है। देश में आम जनता का जिक्र बस गरीबी, कुपोषण, निरक्षरता, भुखमरी और बेरोजगारी को लेकर होता है ... <br />
आज जब हम आधुनिकता की सीढि़यों को चढ़ते हैं तो गर्व करते हैं कि हम भारतवासी हैं, हम उस देश का हिस्सा है जिसका लोहा दुनिया मानती है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर देश हमारा साथ पाना चाहता है, क्योंकि कहीं ना कहीं इस स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय शक्ति जरूर मानती होंगी की भारत के पास तन, मन और सबसे खास धन तो बहुत है। इसी का प्रमाण है स्विस बैंकों में हमारे देश अरबों खरबों रूपया पड़ा है, जिसे हमारे देश बड़े पेट वाले सफेदपोश भ्रष्टाचारियों ने छिपा कर रहा है। देश के वासी, देश का पैसा, देश से वसूला, देश से ही लूटा और छिपाया विदेशी बैंकों में? इतनी हिम्मत आम लोगों में नहीं हो सकती। सीधी सी बात है जब तक ‘सफेद लाइट’ का ‘सिग्नल’ ना तब तक पैसों की गाड़ी आगे नहीं चल सकती। खैर, बात की ज्यादा गहराई में ना जाते हुए बस यही कहना चाहती हूं कि जागरूकता और पहल ऐसे दो हथियार है जिससे बड़े से बड़े पहाड़ को काटा जा सकता है, शायद अन्ना हजारे देश में जल्द-जल्द ये दो हथियारो की धार तेज करने को तैयार हैं। चलिए, मुद्दा अच्छा, वजह ठोस और और समस्या का समाधान भी जरूरी है। इसीलिए अन्ना हजारे को ‘भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों’ पर विजय प्राप्त हो, इसके लिए उन्हें बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।<br />
</div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-29456532948863515202011-04-06T01:40:00.000-07:002011-04-06T01:40:45.402-07:00बड़े दिल वालों का छोटा बड़-बोलापन...?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjyar4dCcqqPd2b73sMqyM0sDyoNWDoqQ65kn4qa7h51Fy1iEUaKoHvljUhcHYXMCwKtdCjB99OoAsIEGgifWuP9otadkuFKtYDeDikMPiK2jfDyJM5t7qwCsROZLjyHqiWToxoPcUjOZ5H/s1600/afridi.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjyar4dCcqqPd2b73sMqyM0sDyoNWDoqQ65kn4qa7h51Fy1iEUaKoHvljUhcHYXMCwKtdCjB99OoAsIEGgifWuP9otadkuFKtYDeDikMPiK2jfDyJM5t7qwCsROZLjyHqiWToxoPcUjOZ5H/s320/afridi.jpg" width="233" /></a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnZrC2FAubXbA5583C7TCi4Bqh98ciyd4rbGFR5TEnZb2BX8X3uWnCnVFe_JMKzqEPpQ44J52sRDK0boS50-65Q7_dGxYWVoJv2J2tiaG1TF2DSuJ_Fq-dOLEwExpWcHFHCCg8YnAe1F7g/s1600/raj.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnZrC2FAubXbA5583C7TCi4Bqh98ciyd4rbGFR5TEnZb2BX8X3uWnCnVFe_JMKzqEPpQ44J52sRDK0boS50-65Q7_dGxYWVoJv2J2tiaG1TF2DSuJ_Fq-dOLEwExpWcHFHCCg8YnAe1F7g/s320/raj.jpg" width="240" /></a></div>भारत ने वल्र्ड कप क्या जीता कि सभी की जागते हुए तो दूर बल्कि सोते हुए भी नींद को घुन लग गया है, ऐसा मैं नहीं कह रही हूं बल्कि ऐसा तो वो कह रहे हैं जिन्होंने पाकिस्तानी क्रिकेट कप्तान शाहिद अफरीदी और श्रीलंकाई राष्ट्रपति के दोगलेपन और बड़बोलेपन को सुना और पढ़ा है। ताजा उदाहरण अभी सुर्खियों में बना हुआ है कि ‘‘शाहिद अफरीदी ने कहा है कि भारत और भारत के लोगों का दिल बहुत छोटा, जिसके कारण उनके साथ लम्बे रिश्ते बनाने में बहुत परेशानी होती है। अल्लाह ने भारत वालों को इनता बड़ा और साफ दिल नहीं दिया, जितना की हम पाकिस्तानियों को दिया है।’’ हम अफरीदी की भावना को ठेस ना लगाते हुए बस ये कहना चाहती हूं कि शायद, शाहिद अफरीदी ने कभी कबीर दोहों पर गौर नहीं फरमाया है, अगर इन्हांेने इनपर कभी थोड़ा सा भी गौर फरमाया होता, उनका पता होता था कि मुंह मियां मिट्ठू बनाने से कोई भी अपने बड़े दिल और बड़ी सोच वाला नहीं दिखता। जैसे की कबीर के दोहे में कहा गया है<br />
<br />
<div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;">कि-ः <b>‘‘बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलया कोए।</b></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><b> जो दिल खोजा आपना, मुझसे से बुरा ना कोए’’।।</b></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"> इस दोहे को आप और हम एक साधुवाद नजरिए से सोचते हैं, लेकिन इसे हम एक सामाजिक सांचे में भी ढाल सकते हैं। शायद इसी नजरिए को ध्यान में रखते हुए ‘हम भारतीय अपनी कमी या गलती को सामने से खुद मान लेते हंै और उपलब्धियों का बखान करने में भी हिचकते हैं।’ वो बात अलग है कि अब हमारे देश की मीडिया इस सामाजिक सोच और साधुवाद सोच से थोड़ा आगे निकल आई है ये दोनों काम वो बाखूबी कर लेती है। जिसके कारण उसे भी अफरीदी की बड़-बोलेपन का शिकार होना पड़ा। वैसे यहां पर थोड़ा सा भारतीय मीडिया को दोषी ठहराया जा सकता है। वाकई वल्र्ड कप को लेकर भारतीय मीडिया ने कुछ ज्यादा ही मिर्च-मसाला लगाया और खेल भावना से खेले जाने वाले खेल को ‘भारत और पाक के बीच महासंग्राम आज’ और ‘आज बजेगा लंका का डंका’ जैसी हेडलाइन का जमकर इस्तेमाल किया। भाई क्या जरूरत है इस तरह तिल का ताड़ बनाने की। खैर, ये बात तो हुई हमारी कमी की। पर ये क्या अभी हमें अपनी एक कमी का एहसास ही हुआ था कि श्रीलंका ने भी कुछ अफरीदी टाइप कमंेट कर दिया है, जरा आप भी सुनिए भला माजरा क्या है? दरअसल, श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे का कहना है कि ‘‘भारत को वल्र्ड कप जीत की खुशी श्रीलंका की वजह से मिली है, क्योंकि श्रीलंका की 2 करोड़ जनसंख्या ने भारत की 1 अरब 21 करोड़ जनता को कुछ पल खुशी के देना चाहती थी। इसीलिए श्रीलंका वल्र्ड कप से एक कदम पीछे हट गई।’’ चलो भई, भला हो श्रीलंका का कि उनसे भारत के लिए इतना बड़ा कदम उठाया और इसी के साथ पाक कप्तान को कहना चाहूंगी की सीखो, सीखो अफरीदी कुछ श्रीलंका के खिलाडि़यों, सरकार और जनता से कुछ सीखो। इसे कहते हैं बड़कपन और बड़ा दिल। जो हमें खुशी देने के लिए फाइनल मैच में हारने की इच्छा लेकर मैदान पर उतरे थे। मगर ये क्या, इस सारे किए कराए पर श्रीलंका राष्ट्रपति महिंद्र राजपक्षे ने पानी फेर दिया! भई, क्या जरूरत थी कि इस तरह से खुलेआम ये कहने की श्रीलंकाई टीम ने भारत की खुशी के लिए इनता बड़ा त्याग किया है। </div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"> क्या क्रिकेट के करोड़ो प्रशंसक और दर्शक देख नहीं सकते कि श्रीलंका ने भारत को किस तरह से प्रोत्साहित किया था? क्या उन्हें दिखाई नहीं दिया था जब 275 रनों का पीछा करते महेंद्र सिंह धोनी ने जीत हासिल करने वाला आखिरी छक्का जड़ा था तो श्रीलंकाई टीम के चहेरे पर कैसी रौनक आई थी? और दिल से निकल गया था कि ‘‘देखो, देखों हमारी इतनी कोशिशों के बाद भारत आखिर जीत ही गया।’’ क्यों राजपक्षे जी आप यहीं कहना चाह रहे थे ना ? ऐसा मैं नहीं बल्कि वहीं करोड़ों दर्शकों और प्रशंसकों का कहना है...? खैर, अब मैं अपने बड़-बोलेपन का ज्यादा इस्तेमाल ना करते हुए यही कहना चाहूंगी कि हर खेल में किसी एक की ही जीत निश्चित है, अगर आप और हम अपनी जीत को तहेदिल से अपनाते हैं तो अपनी हार को भी उतनी सहजता से अपना लेना चाहिए। अब ये कोई साधुवाद सोच नहीं, बल्कि सच है कि ‘‘जब आप अपनी हार किसी और के सिर मढ़ते हो तो सभी को पता चल जाता है कि कमी किसकी है और कहां पर है ?’’ <span class="Apple-style-span" style="font-family: arial; font-size: 14px; line-height: 25px;">क्यूँ </span> मैंने सही कहा ना ? </div><div><br />
</div></div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-12359167437027684472011-04-05T02:07:00.000-07:002011-04-05T02:07:51.594-07:00जनगणना ने दिए चिंता के नए आंकड़े...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjohcJsfX91cGb7IkFGxqHGMdNkeFw8Fzh8xsL9NT-wpOlaPlffEbh7A7GHG3qj9OejJG4Xh-vy-6nUWZ4TDa1DlJ8pSzrRHYfIetXMV4JnkBfGAdDHoOa_6bPmScxRTDoqp9bh_wWlph4c/s1600/india-census-2011.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjohcJsfX91cGb7IkFGxqHGMdNkeFw8Fzh8xsL9NT-wpOlaPlffEbh7A7GHG3qj9OejJG4Xh-vy-6nUWZ4TDa1DlJ8pSzrRHYfIetXMV4JnkBfGAdDHoOa_6bPmScxRTDoqp9bh_wWlph4c/s320/india-census-2011.jpg" width="266" /></a></div><br />
देश में वैसे मुद्दे तो बहुत बड़े-बड़े हैं, जिनपर बात और बहस की जा सकती है। जैसे-वल्र्ड कप, भ्रष्टाचार, राजनीति मसले, कालाधन, आतंकवाद, गरीबी या शिक्षा। ये सभी अपनी जगह अहम है। लेकिन एक दूरगामी सोच का सफर तय किया जाए तो सबसे बड़ा मुद्दा इस समय भारतीय जनगणना का है। 2001 के बाद हुई 2011 की जनगणना थोड़ी हैरान करने वाली है। भारतीय विकास के आधुनिक दस साल में इस बार फिर देश की सोच औेर शिक्षा के दर्शन करने को मिले हैं। बीते मार्च की आखिरी तारीख को भारतीय जनगणना में बताया गया कि ‘इस बार भारतीयों की गिनती 1.21 अरब हो गई है।’ यानि बुलंद भारत की विशाल तस्वीर... वैसे भारत ने 2001 में 1 अरब़ से कुछ ही ऊंची जनसंख्या को पार करते हुए इन दस सालों में 18 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या का इजाफा किया। यानि सबकुछ दुरूस्त है, मतलब 1991 की गणना में जनगणना में लगभग 23 प्रतिशत की वृद्धि नोट की गई थी, जबकि 2001 में 21 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई थी।<br />
वैस विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार 17 फीसदी की वृद्धि के साथ भारत की 1.21 अरब की आबादी है जोकि की आंकड़ों के मद्देनजर कुछ कम भी नहीं है क्योंकि अमेरिका, इडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल आबादी को अगर मिला दिया जाए, तो भी भारत की आबादी इस संख्या से ज्यादा है। मगर संतुष्टि इस बात की है कि इस बार भारतीय लोगों में कुछ हद तक जागरूकता तो जरूर आई है तभी तो इस बार छोटा ही सही लेकिन दो दशकों में बढ़ी जनसंख्या के बाद भी वृद्धि का प्रतिशत कुछ कम ही हुआ है।<br />
मगर अफसोस है कि जहां जनसंख्या का प्रतिशत कम रहने से जागरूकता के आयाम भारतीय जनता के बीच देखने को मिले हैं वहीं दूसरी और घटते लिंग अनुपात ने चिंता की नई वजहों को जन्म दिया है। मतलब, बढ़ती जनसंख्या में लड़के और लड़की के अनुपात (लिंगी अनुपात) में काफी अंतर देखने को मिला है। अभी तक यह संतुष्टि जताई जा रही थी बेशक छोटा फर्क ही सही, लेकिन बढ़ी जनसंख्या में कम वृद्धि होना शुभ संकेत तो है, जबकि लिंग अनुपात की गड़बड़ाती गिनती ने भारतीय समाज की उस छोटी और अमर्यादित सोच का भी खुलासा किया है, जो आज भी लड़कियों को पैदा होने से पहेले ही खामोश कर देती है। सूत्रों के मुताबिक, पिछली जनगणना में जहां 1000 पुरूषों पर महिलाओं की संख्या 933 थी, जो इस दशक में 1000 पुरूषों पर महिलाओं की संख्या घटकर 914 है। इन आंकड़ों को महज साधारण आंकड़ें कहकर पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता, क्योंकि भारतीय समाज के वरिष्ठ विद्वानों का मानना है कि इस तरह से लिंग अनुपात भारतीय समाज में कई प्रकार के अपराधों को विकराल बना सकता है, एक ओर तो पहले से ही समाज में लड़कियों को बोझ समझकर उन्हें दुनिया में ‘ना लाना’ बड़ा अपराध है, फिर उस पर लड़कियों और महिलाओं को लेकर रोज-रोज होते अपराधों में निश्चित तौर पर वृद्धि होगी ही। मूल रूप से कहा जा सकता है कि भारत में बेशक दो दशकों में जनसंख्या का आंकड़ा गिरा हो लेकिन, लिंगानुपात का आंकड़ा गिरने से महिला जगत से जुड़े अपराधों की गिनती बढ़ायेगा ही...<br />
<br />
<br />
<div><br />
</div></div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-6497250261747901942011-01-16T10:52:00.000-08:002011-01-16T10:52:31.587-08:00‘गर्व या शर्म’ क्या महसूस करें ‘हम’ ? <br />
आपने लंदन प्रिंस चाल्र्स की योजना के बारे में तो सुना और पढ़ा होगा। दरअसल, प्रिंस चाल्र्स की संस्था ‘प्रिंसेज फाउंडेशन’ भारत के गरीबों को आशियाने देने की योजना बना रही है। इसके लिए कल्याणकारी कार्यों में लगी ‘प्रिंसेज फाउंडेशन’ के द्वारा ‘माॅडल टाउनशिप’ नाम की योजना को तैयार किया जा रहा है। योजना के मुताबिक, 25 एकड़ जमीन पर दो बस्तियों को बनाया जाएगा और इसके लिए जमीन का चुनाव बेंगलौर और कोलकाता हो सकता है। जानकारी के मुताबिक,‘‘ प्रिंस चाल्र्स को ‘स्लमडाॅग मिलेनियर’ फिल्म ने सोचने पर मजबूर किया। वे मानते है कि ‘भारतीय झुग्गियोंवासियों का जीवन बहुत ही गंदा, बीमार और गरीब है।’ शायद इसीलिए वह भारत की गरीब बस्तियांे व झुग्गियो में रहने वालों के जीवन को कुछ सुधारना चाहते हैं।’’ जिसके मद्देनजर चाल्र्स ने बेंगलौर और कोलकाता में लगभग 15 हजार गरीब और बेसहारा लोगों को स्वच्छ व स्वस्थ रहन-सहन देने के लिए करीब 3 हजार घर बनाने की योजना को अमलीजामा पहना सकते हैं। चलो, इस योजना से ये उम्मीद जताई जा सकती है कि यह एक सुधारात्मक पहल है। अगर यह योजना सफलतापूर्वक पूरी हो गई तो करीब 15 हजार लोगों को बढ़िया आशियाने मिल सकते हैं।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhSa-e8BGYp8xu4S3mUQFquaw0F0kIZkfRGbUjZ2iK1gj1LdwzmiQNvxfzj8FDnKp0EEdEjJ7E_UfDoCZWpUJsGrOaMQJzjDbRvwiyVmvY0HRBdidkSPyihHjckdjwKL5vIDZvJnfCFwzab/s1600/59663205_3043a47bd6.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhSa-e8BGYp8xu4S3mUQFquaw0F0kIZkfRGbUjZ2iK1gj1LdwzmiQNvxfzj8FDnKp0EEdEjJ7E_UfDoCZWpUJsGrOaMQJzjDbRvwiyVmvY0HRBdidkSPyihHjckdjwKL5vIDZvJnfCFwzab/s320/59663205_3043a47bd6.jpg" width="320" /></a></div>वैसे, पता नहीं आॅस्कर जीतकर ‘स्लमडाॅग मिलेनियर’ फिल्म ने क्या साबित किया? पता नहीं झुग्गी-झुपड़ियों के मुश्किल जीवन, गंदगी और अपराध पर बनी ‘स्लमडाॅग मिलेनियर’ को भारतवासियों को ‘इंप्रेस या डिप्रेस’? मगर हां, विदेशी दर्शकों-प्रंशसकों को खूब आकर्षित किया। भई करे भी क्यूं ना आखिर किसी भी देश के गरीबों के फटे चिथड़ों को देखने में भला किसकों रूचि नहीं होगी! जहां भारतीयों फिल्मों को एक आॅस्कर पुरस्कार हासिल करने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ती है। वहीं स्लमडाॅग मिलेनियर ने 8 आॅस्कर झटक लिये। फिल्म के लगभग हर पहलू को श्रेष्ठ दर्शाते हुए फिल्म को भी श्रेष्ठ घोषित किया और फिल्म के निर्देशक, निर्माता और संगीतकार संग सभी भारतीयों कलाकारों ने इसे मील का पत्थर मान लिया। जबकि हकीकत तो यह है कि ‘‘जिस फिल्म को आॅस्कर से नवाजा गया था इसका वास्तविक पहलू भारत की गरीबी, गंदगी, आपराधिक होते बचपन और आपराधियों को दिया गया है, जिससे दर्शकों ने माना कि वाकई भारत की इन समस्या का अच्छा समावेश किया है।’’<br />
खैर, इस फिल्म ने भारतीय सरकार और भारतीयों की आंखों को तो नहीं खोला, मगर लंदन के प्रिंस चाल्र्स ने इसे गंभीरता से जरूर लिया है और इस स्थिति को सुधारने के लिए भी प्रेरित किया। आर्थिक रूप से उभरते भारत बेशक अंतर्राष्ट्रीय देशों के साथ बड़ी-बड़ी अरबों-खरबों की ‘डील’ करें। लेकिन उनके लिए भारतीय गरीबी, भुखमरी, गंदगी और अस्वस्थता से मरते लोगों को बचाने के लिए कोई खास सुझाव या प्रोजेक्ट नहीं होते या उनपर ‘वर्क’ करना जरूरी नहीं समझते। चलों जो भी है बेशक भारतीय सरकार ना सही, भले ही भारतीय ना सही, मगर लंदन के राजकुमार ने तो यह पहल की और एक भारतीय होने के नाते हमारी ओर से शुभकामनाएं रहेंगी की इन लाचारों, बेबस, बीमार और गरीबों का उद्धार हो जाए। मगर इसके साथ यह सवाल अपने आपसे है कि क्या प्रिंस चाल्र्स द्वारा की जा रहीं इस योजना पर हमें ‘गर्व’ होना चाहिए या इसपर ‘शर्म’ महसूस करनी चाहिए?<br />
<div><br />
</div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-1232935378091581012011-01-09T03:53:00.000-08:002011-01-09T03:54:51.051-08:00क्यों कह दें इन्हें सुंदर…!<span class="Apple-style-span" style="color: orange; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 18px;">इस कविता के भाव मंदिरा बेदी या बिपाशा पर भड़ास निकालना नहीं है, बल्कि यह कविता ‘नग्नता’ का वह पर्यायवाची शब्द बता रही है, जिसे आप और हम ‘बोल्डनेस’ कहते हैं। सभी चाहते है कि इस भागते और विकास करते वक्त में सभी ‘बोल्ड’ हो…. पर विचारों और व्यवहार में। क्योंकि हद से ज्यादा होती ‘बोल्डनेस’ उर्फ ‘नग्नता’ का बोझ शायद हमारी भारतीय संस्कृति भी ना उठा पाएंगी। क्यों मैं ठीक कह रही हूं ना?</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: #555555; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: 12px; line-height: 18px;"><br />
</span></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: #555555; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 18px;"><span class="Apple-style-span" style="line-height: normal;"></span></span><br />
<div style="line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><strong style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;">भला क्या होता जा रहा है भारतीय ‘संस्कृति’ को,<br style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />और ये कैसा रोग लगता जा रहा है भारतीय ‘नायिकाओं’ को!</strong></div><strong style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"></strong><br />
<div style="line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><strong style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;">कभी भारी और शालीन कपड़ो से सजना था इनका ‘शौक’,</strong><br />
<strong style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;">अब भला क्यों लगने लगा है इनको हल्के कपड़ों से भी बोझ!</strong></div><div style="line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><strong style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;">पहले ‘वोग’ के लिए मंदिरा ने खिसका दिया अपना टाॅप,</strong><br />
<strong style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;">और अब बिपाशा ने ‘मैक्सिम’ के लिए किया है सेम वही जाॅब!</strong></div><div style="line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><strong style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;">कभी गुजरे वक्त में सुंदरता का ‘आंकलन’ था मन की सुंदरता,</strong><br />
<strong style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;">तो क्यों आज ‘नंगे’ शरीर को बना दिया है खूबसूरती का पैमाना!</strong></div><div style="line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><strong style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;">जब ‘धीर’ मन में नंगा शब्द मचा देता है अधीरता,</strong><br />
<strong style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;">तो… क्यों खुद का नंगापन आंखों में ‘शर्म’ नहीं दिखाता!</strong></div><br />
<div style="line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><strong style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;">भला क्यों, आंशिक रूप से ढके शरीर को ‘कह दें’ सुंदरता,<br style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />जब… बच्चों और बड़ों के समक्ष उन्हें देखने से ‘आंखें चुराए’!!</strong></div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-91748293033672494232010-12-30T08:29:00.000-08:002010-12-30T08:29:44.081-08:00… वो अधूरे सपने<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="color: orange;">सपनों के लम्हों को आज हम संवारने चले,<br style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />उस बेजान-बंजर जमीं पर बहार उगाने चले हैं।</span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="color: orange;">ये जानते हैं हम कि मौसम है “पतझड़” का,<br style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />फिर भी उम्मीदों का बसंत बसाने चले हैं।।</span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="color: orange;">मालूम हैं हकीकत से दूर खड़े हैं वो,<br style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />फिर भी अरमानों का बाजार सजाने चले हैं।</span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjONs3Cei5YR9fviLFoQJu3n825QxFtI9tzqvB8n4-7bLYiFiFnBU0Kf0Zm_N7bn8Dgc5hu3n67JHqz-pjqVktnLockuUVIRyaZDEubmQHMQsh2Sq5TM46kYiMfqi64Q0ieEyfaTlQ-9JAZ/s1600/let+go.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="color: orange;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjONs3Cei5YR9fviLFoQJu3n825QxFtI9tzqvB8n4-7bLYiFiFnBU0Kf0Zm_N7bn8Dgc5hu3n67JHqz-pjqVktnLockuUVIRyaZDEubmQHMQsh2Sq5TM46kYiMfqi64Q0ieEyfaTlQ-9JAZ/s1600/let+go.jpg" /></span></a></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="color: orange;"><br />
</span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="color: orange;">पलभर का भी साथ ना मिला उस “हमसफर” का,</span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: 'Times New Roman'; line-height: normal;"><span class="Apple-style-span" style="color: orange;">और हम जिंदगी को उनके साथ बिताने चले हैं।।</span></span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="color: orange;">इन राहों पर उलझे फैसलों को हम सुलझाने चले,<br style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />सच को जानते ही नहीं और झूठ को सच बनाने चले हैं।</span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="color: orange;">जिंदगी के सफर में छूटे सपनों के इस ” कारवां ” को,<br style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />आज हम फिर संभालकर सुंदर सच बनाने चले हैं।।</span></div><div><br />
</div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-88129138712269795492010-12-25T00:10:00.000-08:002011-01-16T11:10:31.463-08:00साल 2010 की यादें<span style="color: purple; font-size: large;">देख, टाॅपिक ‘साल 2010 की यादे’,<br />
मन में उठने लगे यादों के ख्याल।<br />
और धीरे-धीरे खंगालने लगी मै,<br />
2010 की प्यारी-सुनहरी याद।।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhji-3c4lqddPxriq7WnfhAlSigGeWGUxAqm2kSLrmnGHvBFOsJNncsa_IGrtg2dYdLNJjlfpkawP0qeGjg8t69rd-BiyFiKZEjb1gciKkmeNZZxa0HWjlUMO5cphFT2cWdGDlII2bDf10z/s1600/be-not1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><img border="0" height="320" n4="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhji-3c4lqddPxriq7WnfhAlSigGeWGUxAqm2kSLrmnGHvBFOsJNncsa_IGrtg2dYdLNJjlfpkawP0qeGjg8t69rd-BiyFiKZEjb1gciKkmeNZZxa0HWjlUMO5cphFT2cWdGDlII2bDf10z/s320/be-not1.jpg" width="320" /></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">जब मैंने गुजरे वक्त के गर्भ में,<br />
डाले अपने दोनों हाथ।<br />
तो, साल 2010 में संग रहा,<br />
अच्छे-बुरे परिणामों का साथ।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">साल के शुरू में बनते रहे, <br />
शिक्षा और निरक्षरता पर विचार।<br />
तो कभी खुद हमने छीन लिए,<br />
बच्चों से पढ़ने के अधिकार।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">देख 2010 में देश की,<br />
गरीबी की हालत-हलाल।<br />
इस साल भी कतई नहीं,<br />
बदले इनके दर्दनाक हाल।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">कसाब बना रहा देश का दामाद,<br />
रामजन्म भूमि मंे लड़ते रहे।<br />
जन्म अधिकार व स्वमित्व के लिए,<br />
अब भी अनसुलझे है ये दोनों विचार।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">कभी सड़कों पर नोची गई,<br />
किसी लाड़ली की लाज।<br />
तो कहीं ढकोसलों में सजता रहा,<br />
अमीरों का दिखावटी समाज।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">लूट-पाट के इस साल में,<br />
बेजान हुए हाथ और हथियार।<br />
तो कभी इन्हीं हाथ-हथियार से,<br />
होता रहा बेकसूरों पर अत्याचार।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">गुजरे साल में जहां सानिया की, <br />
शादी बनी अफवाहों का बाजार।<br />
तो वहीं रूचिका को नहीं मिला,<br />
बरसों पुराना अधूरा न्याय।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">हर साल की तरह सूखे ने,<br />
लील लिए किसानों के प्राण।<br />
तो कहीं बाढ़ में डूब गए,<br />
सारे के सारे सुनहरे अरमान।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">बीमार और कुपोषित तन में,<br />
ना बची कोई सेहत की आस।<br />
फिर भी नाज करते रहे हम,<br />
कि देश हमारा है सबसे खास।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">कभी काॅमनवेल्थ तो कभी,<br />
सालभर रहा त्यौहारों का अंबार।<br />
और इन्हीं के साथ रहे,<br />
होनी-अनहोनी के आसार।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">इस साल भी लाखों टन अनाज,<br />
चढ़ा लापरवाही की खाट।<br />
और इसी कारण भूखे-मजबूर किसान,<br />
चढ़ते रहे लकड़ियों पर बनकर लाश।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">इस साल फिर बन गई बिहार में,<br />
नीतिश की दमदार दोबारा सरकार।<br />
संसद नहीं चली घोटालों के कारण,<br />
और धनहानि होती रही बार-बार।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">इस साल भी फिल्मी दुनिया में,<br />
चलता रहा मनोरंजन का राज।<br />
इसी वजह से जल्दी हो गई,<br />
मुन्नी बदनाम और शीला जवान।।</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: purple;"><br />
</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;">बस... गुजरे हर साल की तरह,<br />
समान लगा मुझे ये साल।<br />
और अब मुझे इंतजार है ठंडे-सुहाने,<br />
‘शुभकामनाओं पूर्ण’ 2011 का अगाज।।</span><br />
<span style="color: purple; font-size: large;"> अंजू सिंह (नोएडा)</span>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-29554460070304585452010-12-16T10:29:00.000-08:002010-12-25T00:17:46.919-08:00आखिर क्या है औरत ?<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span style="background-color: #444444;"></span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="background-color: #444444; color: yellow;"><b></b></span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span"><span class="Apple-style-span"><b><br />
<span style="background-color: #444444; color: yellow;"></span></b></span></span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="background-color: #444444; color: yellow;"><b>कभी समाज के दरमियान से झांकती है औरत,<br style="margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />कभी अपने आप को समाज से आंकती है औरत,<br style="margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />कभी रीति-रिवाजों की जंजीरों को तोडती है औरत,<br style="margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />तो कभी अपनी मर्यादा को खुद छोडती है औरत…</b></span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="background-color: #444444; color: yellow;"><b>कभी परायों के बीच में तड़पती है औरत,<br style="margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />कभी दुखों में दिन-रात सिसकती है औरत,<br style="margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />कभी मुस्कराहट बन कर खिलती है औरत,<br style="margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />तो कभी असभ्यता के धूप में झुलसती है औरत…</b></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdlqMQben59J58xUoFcOS5zSeM-dMTZJUzEhMvlE9-kxLJhK7MKBNBFKpd-nHjN_bi4PlrwyUM7ARMptPDyXPaVIXk6F62mCCGzpk8vdo91rceHaQSDYoaj1KPABuWawC6g9YJCVz1jQC_/s1600/india_8x102-819x1024.jpg" imageanchor="1" style="background-color: #f3f3f3; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="background-color: #444444; color: yellow;"><b><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdlqMQben59J58xUoFcOS5zSeM-dMTZJUzEhMvlE9-kxLJhK7MKBNBFKpd-nHjN_bi4PlrwyUM7ARMptPDyXPaVIXk6F62mCCGzpk8vdo91rceHaQSDYoaj1KPABuWawC6g9YJCVz1jQC_/s320/india_8x102-819x1024.jpg" width="255" /></b></span></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4vw7OLPzHEQsQmBnktWOsOKezTzgkDi0UG0HxNx1joFc9479QtZ5GDLYlND0NZRUKvtpRgaIqVAvVfDM87w5r_Prd87bO0dn4r320iRSK3NOWPpHPK_nQfV8UtBvMnQHj3D0opjrQa6qz/s1600/3073580891_27232cbd05.jpg" imageanchor="1" style="background-color: #f3f3f3; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="background-color: #444444; color: yellow;"><b><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh4vw7OLPzHEQsQmBnktWOsOKezTzgkDi0UG0HxNx1joFc9479QtZ5GDLYlND0NZRUKvtpRgaIqVAvVfDM87w5r_Prd87bO0dn4r320iRSK3NOWPpHPK_nQfV8UtBvMnQHj3D0opjrQa6qz/s320/3073580891_27232cbd05.jpg" width="209" /></b></span></a></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span"><b><br />
<span style="background-color: #444444; color: yellow;"></span></b></span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="background-color: #444444; color: yellow;"><b>कभी नये जीवन की संस्कार है औरत,<br style="margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />कभी संतान के लिए अहम् विचारक हैं औरत,<br style="margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />कभी गुणों और सभ्यता की धारक हैं औरत,<br style="margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />तो कभी हर दुखों की दर्द निवारक हैं औरत…</b></span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="background-color: #444444; color: yellow;"><b>कभी घर-परिवार का समर्पण है औरत,<br style="margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />कभी अपने आप को ही अर्पण है औरत,<br style="margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />कभी गृह लक्ष्मी तो कभी अन्नपूर्णा है औरत,<br style="margin: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;" />सच है कि इस संसार मे पूर्ण है औरत…</b></span></div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 18px; margin: 0px; padding-bottom: 10px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="background-color: #444444; color: yellow;"><b>anju singh</b></span></div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-72395005701166896182010-12-09T06:59:00.000-08:002010-12-13T04:10:46.913-08:00गरीब की हांडी में भी ‘घोटाला’<div style="text-align: justify;">घोटाला. घोटाला.. और घोटाला...! भारतीय होने के नाते यह कहना बड़ा अफसोस भरा है कि भारत की कार्यनीति और राजनीति का घोटाले सबसे ज्यादा आम व गरीब जनता की मुश्किलें बढ़ता है। अभी 2जी-स्पैक्ट्रस मामले पर संसद में गर्मी खत्म नहीं हुई है कि उत्तर प्रदेश में एक और बड़ा खाद्यान घोटाला सामने खड़ा हुआ है। अब देश के सबसे बड़े खाद्यान्न घोटोले में उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मामले की जांच कर रही सीबीआई को छह महीने की मोहलत देने के साथ उत्तर प्रदेश को भ्रष्टतम प्रदेश करार दिया। इस अनाज घोटाले में पीडीएस पर गरीबों में अनाज न बांटकर उसको बांग्लादेश और नेपाल को बेच देने का आरोप है। दरअसल, 2003 से 2007 के बीच उत्तर प्रदेश के कई जिलों से हजारों टन अनाज जो करीब 3000 करोड़ का था, उसे अवैध रूप से बेच दिया गया था। सूत्रों के अनुसार, घोटालें की इस हांडी में उत्तर प्रदेश के कई नेता और बाबूओं ने जमकर करछी चलाई। उन्होंने गरीबों के पेट पर लात मार कर अनाज को बाहर बेच दिया और भूखी जनता को भूख से तड़पने पर मजबूर कर दिया। 3000 करोड़ के इस खाद्यान्न घोटाले के रोशनी में आने के बाद अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले की सीबीआई से जांच के आदेश दिए हैं। ताकि इस घोटाले में शामिल उत्तर प्रदेश के नेताओं, बाबूओं और कारोबारियों की तिकड़ी पर लगाम कसी जा सके। वैसे, कहने को सीबीआई एक स्वतंत्र संस्था है लेकिन सीबीआई में राजनीतिक घुसपैठ ने इसे भी राजनीति की तरह भ्रष्ट बना दिया है। बहरहाल उच्च न्यायालय द्वारा खाद्यान घोटाले में संज्ञान लिए जाने के बाद कहीं न कहीं यह उम्मीद जगी है कि इस मामले पर से पर्दा जल्द उठेगा और घोटाले में शामिल अधिकारी और राजनेता बेनकाब होंगे। ये तो है अनाज घोटाले की बात जिस पर कानून कार्यवाही कर रहा है, मगर एक अलग मामला ये भी है कि इस तरह की घपलेबाजी से अलग भी हर साल करोड़ो-लाखों टन अनाज लापवाही की भेंट चढ़ जाता है। इसी साल एक के बाद एक अनाज सड़ने के बहुत बड़े आंकड़े सामने आए हैं। थोड़ा हो-हल्ला होने के बाद अब यह मामला भी लगभग ठंडा ही हो गया। सवाल बनता है कि 2003 से 2007 में करोडों़ टन अनाज को अवैध रूप से बेचने वालों पर लगाम कसना जरूरी है, लेकिन साल दर साल लाखों टन अनाज जो सड़ जाता है उसपर भी ठोस कार्यवाही की जानी चाहिए। खरबूजा देख खरबूजा रंग बदलता है! मतलब देश में या तो अवैध रूप से नेता अपनी जेब भरते हैं और अगर ऐसा नहीं कर सकते तो हर व्यवस्था को राम भरोसे छोड़ देते हैं। वो भी इतनी सफाई से कि किसी को गंदगी महसूस ना हो। ऐसे कारनामों का ही नतीजा है कि करोड़ों की भूख को शांत करने वाला अनाज मौसम, लापरवाही और जगह की कमी के कारण सड़ा दिया जाता हैं। नहीं तो बाहरी बाजार में बेच दिया जाता है।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjh3stnH-UcevpmoKWImFNehyM7rq3JdUzuJjT9jZVJj5aPirasesdOk6B_YSnXpMJ5379QZA9tJ1aKGMf0vpEcl0benZfvoVm0VBvleVjrTg4-4GwG2uqbZr9AVuLd6jbjIz9oKc8ABjXB/s1600/indian-poverty.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="256" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjh3stnH-UcevpmoKWImFNehyM7rq3JdUzuJjT9jZVJj5aPirasesdOk6B_YSnXpMJ5379QZA9tJ1aKGMf0vpEcl0benZfvoVm0VBvleVjrTg4-4GwG2uqbZr9AVuLd6jbjIz9oKc8ABjXB/s320/indian-poverty.jpg" width="320" /></a></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">अनाज है भूरपूर फिर भी भूखे सबसे ज्यादा</div><div style="text-align: justify;">भारत कृषि प्रधान देश है यह आप और हम जानते है। देश में जिस बड़े स्तर पर कृषि होती है, उसके बराबर का स्तर भारत में भूखों का भी हैं। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (आईएफपीआरआई) के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार भारत में भूख की समस्या चिंताजनक स्तर तक पहुंच गई है। यहां तक भारत की स्थिति अफ्रीका के अति भूखे 25 देशों से भी बद्तर है। भूख और अपर्याप्त भोजन की वजह से भारतीय बच्चों में कुपोषण और 5 साल से कम उम्र की बाल मृत्यु 50 प्रतिशत है। महिलाओं भी शारीरिक रूप से कमजोर पाई जाती है। गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, असमान विकास की उपर्युक्त स्थितियां भी ऐसे घोटालों और अव्यवस्थाओं का ही नतीजा हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश में औसत से अधिक अनाज उपलब्ध रहता है, करोड़ों टन अनाज आगामी सालों के लिए सुरक्षित किया जाता है ताकि आने वाले समय में देश में कोई भूखा न रहे। मगर ऐसा होता नहीं है जानकार हैरानी होगी की रोज देश की 25 करोड़ गरीब जनता भूखे पेट सोती है। आम लोगों से जुड़े मामले भी संसद में टिक नहीं पाते हैं। संसद मे भी जिन मामलों से पक्ष-विपक्षी पार्टियों को घेरा जा सकता है उनकों ही जस का तस रखा जाता है। सरकार के पहरेदारों को देश की भूख और भूखी गरीब जनता के मुद्दों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसलिए इस देश मंे भूखी गरीब जनता के हालत कभी नहीं सुधरे और ना ही कभी सुधरेंगे!</div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-67499029837230902322010-12-09T06:57:00.001-08:002010-12-13T04:10:46.913-08:00शिक्षा-मंदिर में गरीबों का जाना क्यों है ‘वर्जित’?<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div style="text-align: justify;">नन्हें हाथों में कलम का जादू दिखाई देता, अपने नौनिहालों को पढ़ते लिखते देख मन खुश तो होता होगा! भविष्य की बुनियाद में शिक्षा रूपी सीमंेट, पत्थर, रेता और पानी के महत्व को भला कौन नहीं जानता। कहने को तो ‘‘अनपढ़ों का जीवन भी हो जाता है सार्थक, मगर उस सार्थकता को आसान डगर खुद अनपढ़ कह नहीं सकता।’’ शिक्षा का दर्पण जहां भविष्य की उज्जवल छवि को दिखाता है वहीं अशिक्षा का पर्दा उन छवियों को छिपाने में बेहद कामयाब होता है। हम बात कर रहे है ‘शिक्षा’ की। दरअसल बात ये है कि हाल ही में डाॅयचे बैंक की एक रिपोर्ट सामने क्या आई कि मन में शिक्षा के जुड़े सवाल उठने लगे। रिपोर्ट का कथन था कि अगले दो दशकों में भारत में काम करने वाली आबादी में 24 करोड़ की बढ़ोतरी हो जाएगी। जो कि ब्रिटेन की कुल आबादी का चार गुना है। यानि ब्रिटेन की कुल आबादी से चार गुना ज्यादा हमारे देश में काम करने वाले यानि नौकरीपेशा होंगे। लेकिन एशियन डेवलपमेंट बैंक के प्रबंध निदेशक का कहना है कि शिक्षा के बिना इस आबादी का यह लाभ नहीं उठा सकते हैं। और यह सच भी है आप और हम इस बात का अंदाजा सहज लगा सकते हैं कि करीब 120 करोड़ की आबादी वाले देश में अगर धीमी गति की शिक्षा हो तो देश का क्या होगा! देश के विकास का क्या होगा! देश की नई पीढ़ी का क्या होगा! आंकड़े बताते हैं कि देश की करीब 70 से 80 प्रतिशत आबादी आज भी 20 से 25 रूपए में अपना गुजारा करती है। ऐसे में मूल जरूरतों को काट-काट कर पूरा किया जाता है, तो गरीब परिवार अपने बच्चों को शिक्षा कैसे दिलाएं? इसी का परिणाम है कि राष्ट्रीय आर्थिक विकास से वंचित गरीब व पिछड़े इलाकों में भी शिक्षा ना के बराबर है। वैसे भारत में कामगरों की उम्र 15 साल से शुरू हो जाती है, मगर सच्चाई तो यह है कि 15 से काफी कम उम्र के बच्चे को बहुत आसानी से काम करते हुए देखा जा सकता है। तो इस नजरिए से देश का विकास होना निश्चित है और शिक्षाविदों को चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है। मगर हां, अगर बात देश में निरक्षरता को दूर करने की है तो इस मुद्दें को गंभीरता से लिया जाना जरूरी है। क्योंकि ये हमें निर्धारित करना है कि हमारी देश की भावी पीढ़ी ‘नौकरी’ करेगी या ‘गुलामी’? क्योंकि भारत की 120 करोड़ आबादी की आधी आबादी 25 साल से कम की है। 2035 तक भारत की आबादी 150 करोड़ होगी और उसमें कामकाजी प्रतिशत आबादी 65 फीसदी होगी। लेकिन भारत को इस आबादी का लाभ तभी मिलेगा जब देश के भावी पीढ़ी को बुनियादी रूप से मजबूत शिक्षा दी जाए, उसके प्रशिक्षित किया जाना बहुत बड़ी चुनौती है। जिसमें खुद विशेषज्ञों का भी कहना है कि भारत इसमें मामले में बहुत पीछे छूट रहा है। इसी साल अप्रैल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने 14 साल की उम्र तक के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून पास किया है। लेकिन इस पर अमल के लिए स्कूलों और शिक्षकों का अभाव है। इस कानून पर अमल के लिए 12 लाख शिक्षकों की जरूरत है लेकिन इस समय भारत में सिर्फ 7 लाख शिक्षक हैं और उनमें भी 25 फीसदी काम पर नहीं जाते। भारत में साक्षरता दर 65 प्रतिशत है, जबकि चीन में यह 91 प्रतिशत और यहां तक कि केन्या में 85 प्रतिशत है। एक रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल में भर्ती होने वाले बच्चों में से 39 फीसदी 10 की उम्र में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं और 15 से 19 की आयु के किशोरों में सिर्फ 2 फीसदी का व्यावसायिक प्रशिक्षण मिलता है। सूत्रों के अनुसार, हमारी सबसे बड़ी चुनौती स्कूल के स्तर पर है। देश में डाॅप आउट दर बहुत ऊंची है। लेकिन जो स्कूल पास कर जाते हैं, उन्हें ऊंची शिक्षा के कड़ी प्रतिस्पर्धा से गुजरना होता है। श्ेिाक्षा के मुद्दे पर भारत के शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल का मानना है कि ‘‘2020 तक हाई स्कूल पास करने वाले बच्चों की संख्या इस समय के 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करना चाहते हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए सैकड़ों नए काॅलेज और विश्वविद्यालय बनाने होंगे। इस मांग को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस बनाने की अनुमति देने वाले कानून का मसौदा तैयार किया है।’’</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgE8LlIdhuX3VvSA3GMpFazalBb8i9n3BXs_BKmd_zTZ0_oqNQGKh_5LWMWSpT5cx6BrRGpDla0yxOTnOmI4CtMZqU-G4n0dKSf9gh1klS2UDxhhCPjyibpTUxhRnhETU1YF9qSdOUUYwYR/s1600/girl_pixie.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgE8LlIdhuX3VvSA3GMpFazalBb8i9n3BXs_BKmd_zTZ0_oqNQGKh_5LWMWSpT5cx6BrRGpDla0yxOTnOmI4CtMZqU-G4n0dKSf9gh1klS2UDxhhCPjyibpTUxhRnhETU1YF9qSdOUUYwYR/s320/girl_pixie.jpg" width="320" /></a></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">अब सोचने वाली बात यह है कि आजादी के छह दशके के दौरान शिक्षा के विकास पर मसौदा का चलन बहुत ज्यादा रहा है। एक और सरकार है कि निरक्षरता को दूर करने के दावे करती है, वहीं दूसरी ओर धीमी कार्यनीति इन दांवों को पूरा होने से पहले ही दम तोड़ने पर मजबूर कर देती है। देश में जनसंख्या, गरीबी और अशिक्षा तो तेजी से बढ़ रही है, लेकिन सरकारी तौर स्कूल, काॅलेज उतनी तेजी से नहीं बढ़ पा रहे हैं। गैर सरकारी और प्राइवेट सेक्टर के स्कूल और काॅलेज की बात करें तो उनमें देश की उस 80 प्रतिशत आबादी का भला कैसे हो सकता जो मात्र 20 रूपए की दैनिक आय पर जी रही है। अगर आसान शब्दों में शिक्षा के मुद्दों पर कुछ सटीक कहना हो तो कह सकते हैं</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">कि ‘‘एक तो देश शिक्षा में था ‘गरीब’, उस पर भी शिक्षा बहुत ‘महंगी’ हो गई।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"> गरीब ‘कैसे’ जाएं स्कूल-काॅलेज, जब शिक्षा-देवी ही इनसे ‘रूठ’ गई।।</div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-13255791007738050432010-12-07T08:49:00.000-08:002010-12-13T04:10:46.913-08:00ये है घोटाले के पेट में विकसित होता ‘भारत’<div style="text-align: justify;">हम भारत की विविधता के कारण जाने जाते हैं, ढेरों भाषाएं व भिन्न-भिन्न संस्कृति के रंग भारतीयता की पहचान है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत एक ऐसा उभरता पूंजीवादी देश है, जहां पर विकास की संभावनाएं अपार है। और शायद इसीलिए हर देश भारत को अपने सांचे में उतरना चाहता है। हाल ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का आना और भारी-भरकम नौकरी का प्रलोभन देकर अपना काम करके चलते बने। अब आए हैं फ्रांस के राष्ट्रपति निकोल सरकोजी। उन्होंने भी कहीं न कहीं भारतीय अर्थव्यवस्था का फायदा उठाने का मूड बनाया ही होगा। वैसे, यह भारत का वह एक तरफा पहलू है जिसे अन्य शक्तिशाली देश लाभ लेना चाहते हैं, मगर इसका दूसरा पहलू तो खुद भारत को सवालों के घिरे में खड़ा करता है। भारत भ्रष्टाचार के मामले में अन्य देशों से काफी आगे है। कुछ सालों में घोटालों की कई पोल खुली है कि समझ नहीं आ रहा कि पहले किसको समझे! आम नजरिए के अनुसार, सभी घोटालों का घालमेल भारतीय ‘राजनीति की घोटालेबाजी’ की ओर भी इशारा कर रही है। सबसे ताजा घोटाले के तौर पर 2 जी स्पैक्ट्रस घोटाला। जिसके कारण केंद्र सरकार सवालों के घेरे में खड़ी है। आए दिन विपक्षी पार्टियों केंद्र पर दबाव बनाने के हथकंडे अपना रही है। पर क्या आप को पता है कि ‘2 स्पैक्ट्रम घोटाले में 39 अरब के घोटाले की बात सामने आ रही है, मगर इस नुकसान से अलग संसद, सरकार और देश की आर्थिक स्थिति को नुकसान हो रहा है, उसका क्या होगा? ’ क्योंकि 9 नवंबर संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका है और अब तक 16 संसद सभा हो जानी चाहिए थी, मतलब देश के अन्य गंभीर मुद्दों व समस्याओं के निवारण के लिए संसद में उठाना चाहिए था। लेकिन अफसोस है कि संसद की कार्यवाही में 2 स्पैक्ट्रम घोटाला आगे बढ़ने ही नहीं दे रहा है। दरअसल, विपक्षी पार्टियांे ने केंद्र पर इस समय जो दबाव 2 स्पैक्ट्रम घोटाले के कारण बनाया है, उसे वह बिना नतीजा नहीं जाने देना चाहती है। चाहे फिर इसके लिए कितना भी नुकसान क्यों ना हो?</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjg4QCOgqtxOaHquVCgQKDqjzI-b413LpMoolTBv_d2vu8WBX1C6nxopQsvs5g5GOHqWmtvqRSAymgJ5bsxT4-xeFXdAddQ7Hf1O05O4_RB1b5EofjV0W_JKl-Cyodfv8qNkT3xj1TMAxSq/s1600/indian_election_392765.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="217" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjg4QCOgqtxOaHquVCgQKDqjzI-b413LpMoolTBv_d2vu8WBX1C6nxopQsvs5g5GOHqWmtvqRSAymgJ5bsxT4-xeFXdAddQ7Hf1O05O4_RB1b5EofjV0W_JKl-Cyodfv8qNkT3xj1TMAxSq/s320/indian_election_392765.jpg" width="320" /></a></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"> अब बात अगर संसद की कार्यवाही के दौरान खर्च की जाए तो पता चलता है कि संसद की प्रति बैठक का खर्च करीब 8 करोड़ बैठता है। और हिसाब लगाया जाए तो 16 बैठकों का खर्च अनुमानित 1 अरब से ज्यादा होना चाहिए। अब सांसदों और विपक्षी पार्टियों को कौन समझाएं कि जिस तरह से संसद की कार्यवाही नहीं होने के कारण प्रति बैठक नुकसान हो रहा है इसको भी तो ‘इनका मिश्रित घोटाला’ कहा जा सकता है। केंद्र के विपक्ष में खड़ी पार्टियों को पार्टी हित से अलग आम लोगों व देश से जुड़ी अन्य समस्याआंे पर ध्यान देना चाहिए। खैर, इनको समझाना बेकार है, क्योंकि घोटालों की गंदगी साफ करने की कोशिश में यह भी देश व देश की आम जनता के साथ उनकी मांगों और समस्याओं का घोटाला कर रहे है।</div><div style="text-align: justify;"><b>अगर हम थोड़ा सोचे और घोटालों के पन्ने पलटे तो पता चलेगा कि देश में जल्दी जल्दी कई घोटाले हुए है पर अभी तक कोई भी निर्णयक स्थिति में नहीं है। जैसे</b>-</div><div style="text-align: justify;"><b>2जी स्पैक्ट्रम का आवंटन घोटाला -</b> जिसमें 39 अरब का नुकसान हुआ। इस घोटाले पर लम्बे समय तक पर्दा डालने का प्रयास किया गया। आखिर में भारी दबाव के चलते संचार मंत्री ए. राजा से त्यागपत्र मांगा गया और केंद्र को भी आड़े हाथों लेने की विपक्ष की तैयारी जोरो पर है।</div><div style="text-align: justify;"><b>हाउसिंग लोन घोटाला - </b>एक वर्ष की जाँच के बाद सीबीआई ने एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस के प्रमुख सहित आठ लोगों को गिरफ्तार किया। जिसमें कई नामी बैंकों के शीर्ष पदाधिकारियों पर शिकांजा कसा जा रहा है। अनुमान है कि यह घोटाला कई हजार करोड का हो सकता है।</div><div style="text-align: justify;"><b>कॉमनवेल्थ खेल घोटाला -</b> हाल फिलहाल ही तो दिल्ली काॅमनवेल्थ का भूत उतरा है। मगर इसके साथ अन्य कई घोटालों के दानव खड़े हो गए हैं। निर्माण कार्यों में अवांछित देरी और अनाप शनाप खर्चों ने भारतीय ऑलम्पिक संघ, दिल्ली सरकार, दिल्ली विकास प्राधिकरण और दिल्ली नगर निगम सहित केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय को भी कठघरे में खड़ा किया। बजट से कहीं ज्यादा खर्च करने के घोटाले में सीबीआई जांच कर रही है।</div><div style="text-align: justify;"><b>आदर्श सोसाइटी घोटाला -</b> कारगिल के शहीदों के परिवारवालों के लिए बनी इस सोसाइटी पर कांग्रेस पार्टी के नेताओं, बाबुओं और सेना के ऊपरी अधिकारियों ने कब्जा कर लिया। स्वयं मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण इस घोटाले में फंस गए और उन्हें इस्तीफा देना पडा। यह सोसाइटी मुम्बई के एक सबसे महंगे इलाके में बनी है। यह इमारत कई अन्य विवादों में भी फंसी है। आरोप है कि बिल्डर ने पर्यावरण संबंधित तथा जमीन संबंधित कानूनों पर ध्यान नहीं दिया।</div><div style="text-align: justify;"><b>सत्यम घोटाला - </b>सत्यम घोटाले से भला कौन परिचित नहीं है कि सत्यम कम्प्यूटर्स के संस्थापक रामलिंग राजू की चिट्टी से ऐसा भूचाल आया कि शेयर मार्किट भी औंधे मुंह गिर पड़ा। दरअसल, उन्होनें लिखा कि किस तरह से वर्षों तक कम्पनी ने लाभ अर्जित करने के झूठे आँकडे दिखाए। 1 बिलियन के लगभग इस घोटाले को भारत का एनरोन भी कहा जाता है ।</div><div style="text-align: justify;"><b>हर्षद मेहता घोटाला - </b>1992 में बोम्बे स्टोक एक्सेंज में तूफान सा आ गया था। संसेक्स तेजी से ऊपर चढ रहा था। परंतु पर्दे के पीछे का खेल कुछ और ही था। कई भारतीय शेयर दलालों ने इंटर बैंक ट्रांसेक्शन के साथ बाजार को उफान पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें कई देशी और विदेशी बैंकें, बाबु और नेता भी शामिल थे। जब इस घोटाले से पर्दा उठा तो दो महिने के भीतर बाजार 40। तक गिर गया और लोगों के लाखों-करोड़ों रूप डूब गए।</div><div style="text-align: justify;"><b>बोफोर्स तोप घोटाला</b>- भारत ने जब स्वीडन से बोफोर्स तोप खरीदी तब आरोप लगा कि इस तोप को खरीदने के लिए दबाव बनाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नजदीकी लोगों को रिश्वत दी गई थी। इस घोटाले की वजह से कांग्रेस का विभाजन हुआ और 1989 के आम चुनावों में पार्टी की हार हुई। यह केस वर्षों से चल रहा है और शायद वास्तविकता कभी सामने ना आ पाए।</div><div style="text-align: justify;"> <i><b>तो ये अपने विकासशील देश का दूसरा पहलू। जो घोटालों और भ्रष्टाचार के पूरी तरह लैस है। देश और आम लोगों का पैसा घोटाले के बड़े पेट में समा गया। निराशा है कि जिस देश की विकासशीलता के दावे विश्व करता है, वहां पर घोटाले व भ्रष्टाचार के ऐसे जाल बिछे है जिन्हें अभी तक काटा नहीं गया है। अगर साधारण शब्दों में कहा जाए तो सिर्फ इतना काफी है कि अब देश में घोटाला नहीं बल्कि घोटाले में देश है और इसे से ये प्रदर्शित होता है कि ‘ ये है घोटाले के पेट में विकसित होता भारत।’ सरकारी और गैरसरकारी घोटालों से भरपूर देश की ये एक भयानक छवि है। जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है।</b></i></div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-82391776784047595872010-12-07T08:43:00.001-08:002010-12-13T04:10:46.913-08:00मुआवजे की आस ताकते भोपाल गैस पीड़ित<div style="text-align: justify;">साल दर साल बीते गए और बीते 2-3 दिसम्बर को भोपाल गैस त्रासदी की 26वीं बरसी की झलक भी अखबारों में और न्यूज चैनलों में देखी गई। कहने को तो... इस गैस त्रासदी को 26 साल हो चुके हैं, मगर पीड़ितों को उनका हक और हर्जाना देने के नाम पर आज भी रस्मादागी ही चल रही है। देश की सबसे बड़ी इस गैस त्रासदी पर गैस पीड़ितों ने तो अमेरिका से लेकर भारत और मध्य प्रदेश सरकार को जमकर कोसा। ‘‘वैसे गैस कांड पीड़ित इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते हैं। इन पीड़ितों को शायद यह पता नहीं कि वो कोई देश के सांसद नहीं है, जो संसद में हंगामा करें और अपनी उस पीड़ा का हर्जाना ले सके, जो वो और उनकी नई पीढ़ी शारीरिक विकलंागता के रूप में झेल रही है।’’ 26 सालों से लगातार अपने हक की लड़ाई लड़ने और गैस कांड के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन को सजा दिलाने की जद्दोजहद में लगे हैं। बेशक देश और सरकार भूल जाए, लेकिन भोपाल कैसे भूल सकता है 26 साल पहले दो-तीन दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड संयंत्र से जो जहरीली गैस रिसी उसने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था और वहीं हजारों लोग जहरीली गैस से उत्पन्न बीमारियों से जूझने को विवश हैं।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBKTEWOcqpavax87P32fwVRmPNVUk8yyFjl536W-S1hxtcCkE3OhTBlsIy2UNaDccrcZlYyVd7Foa-NXzHwIgHq-j9UC83HpW-TSoC_uXttlSN9iWQ2Ah-Ybj7zoJ2A-ukSKBv-qI8ScEf/s1600/bhopal-gas-tragedy-memorial-bhopal.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBKTEWOcqpavax87P32fwVRmPNVUk8yyFjl536W-S1hxtcCkE3OhTBlsIy2UNaDccrcZlYyVd7Foa-NXzHwIgHq-j9UC83HpW-TSoC_uXttlSN9iWQ2Ah-Ybj7zoJ2A-ukSKBv-qI8ScEf/s320/bhopal-gas-tragedy-memorial-bhopal.jpeg" width="211" /></a></div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">आखिर कब दिया जाएगा मुआवजा?</span></b></div><div style="text-align: justify;"> कम नहीं होते 26 साल। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी अगर सरकार मुआवजा राशि देने पर विचार विमर्श करें तो यह बेहद शर्म की बात है कि जिस गैस कांड में 5000 हजार से ज्यादा की जान गई, हजारों बच्चे, बूढ़े, जवान और महिलाएं विकलांग हुई और अभी तक बस इनके नासूर बने जख्मों पर मरहम लगाने की तैयारी चल रही है। आखिर ये कैसी सरकारनीति है? 1984 में इस कांड के लिए मुआवजे को 750 करोड़ रूपए थी, पता नहीं उसमें से कितना मुआवजे के नाम पर पीड़ितों में बाताशे तरह दिया गया है। मतलब मुआवजा भीख की तरह जिन हाथों में दिया गया उनमें पीड़ितों के हाथ भी कम थे। अब केंद्र सरकार गैस कांड पीड़ितों के लिए मुआवजा दुगुना करने की मांग की जा रही है, मगर इसे ‘जले पर नमक झिड़काना’ कहा जाता है। एक तो इन ढाई दशकों में मुआवजा पीड़ितों तक कट-छटकर पहुंचा है, स्वास्थ्य सुविधएं भी बीमार दी गई है वहां पर अगर मुआवजा दुगुना करने की बात आए तो इसे सिर्फ इसी कहावत के आंका जा सकता है। बेशक, भारत सरकार द्वारा इस भयावह गैस कांड के पीड़ितों के लिए मुआवजे की दुगुना रकम बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं। मगर इस पर आम लोगों और गैस कांड पीड़ितों को विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है।</div><div style="text-align: justify;"> खैर, भोपाल गैस कांड की इस 26 साल पुरानी भयावह त्रासदी के बाद भी गैस पीड़ितों को अफसोस, गुस्सा और उम्मीद तीनों ही है। जहां उन्हें अफसोस है कि देश में इतनी बड़ी दुर्घटना होने के समय से लेकर अब तक कोई ऐसा निर्णय नहीं लिया, जिससे पीड़ितों को राहत मिली हो, बोलवचन और जबानी महरम के साथ कुछ मुआवजा बांट कर जिम्मेदारी पूरी कर दी गई है। जबकि गुस्सा है कि इस त्रासदी के जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी ‘वारेन एंडरसन’ को सजा न मिलने की और उम्मीद है कि देर से सही लेकिन सरकार भोपाल गैस पीड़ितों रहमत कर उन्हें राहत दे। शारीरिक रूप से बेकर हो चुके गैस पीड़ितों में अभी भी मुआवजे की आस बरकरार हैं।</div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-47614366671989542542010-12-07T08:41:00.000-08:002010-12-13T04:10:46.914-08:00राजनीति में ‘दलाल’ और ‘जेल’ का ये कैसा बोलबाला?<b></b><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEif8-2XSIG5D1cqoP73gYUl5xNQba7EpQ6Q_RkppQN9l8hLYbFDNN5FFOJDlWEWXwvdsFcd_P3IU_vAJW3DoT19QxZAs6kaJsaQgQ175eBz9WEIHXD4gjVnwj6OZlqNelMkWoTAeP1yGoA-/s1600/amarazam.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEif8-2XSIG5D1cqoP73gYUl5xNQba7EpQ6Q_RkppQN9l8hLYbFDNN5FFOJDlWEWXwvdsFcd_P3IU_vAJW3DoT19QxZAs6kaJsaQgQ175eBz9WEIHXD4gjVnwj6OZlqNelMkWoTAeP1yGoA-/s320/amarazam.jpg" width="320" /></a></div><div style="text-align: justify;"><b><br />
</b></div><div style="text-align: justify;"><b>सपा (समाजवादी पार्टी) में एक बार फिर से आजम खान की वापसी क्या हुई कि मानों अमर सिंह की दुःखती रग पर हाथ रख दिया हो। दर्द की पीड़ा भी ऐसी हुई कि अमर सिंह ने ‘सपा के नेताओं को जेल का रास्ता भी बता दिया।’ दरअसल, मामला ये है कि पहले तो अमर सिंह ने खुद के लिए ‘दलाल’ जैसे उपाधि झेली और अब सपा में आजम खान की ‘री-एंट्री’ से वह तिलमाला गए हैं। जिसके चलते अमर सिंह ने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और अभी-अभी समाजवादी पार्टी में दुबारा आगमन करने वाले आजम खान को भी सचेत करने का प्रयास किया और कहा कि ‘‘अगर मैंने मुंह खोला तो सपा के कई नेता जेल में होंगे’’। वैसे अमर सिंह द्वारा इस प्रकार की टिप्पणी करना कितना जायज है, ये अमर सिंह का अपना नीजि व राजनीतिक मुद्दा है। क्योंकि आजम खान और अमर सिंह के आपसी मतभेद के कारण ही पहले आजम खान पार्टी से गए और बाद में अमर सिंह भी पार्टी से निष्कासित कर दिए गए थे। मगर अब हवाओं का रूख बदल चुका है और डेढ़ साल के बाद सपा आजम खान का ‘मोस्ट-वेलकम’ कर रही है।</b></div><div style="text-align: justify;"><b> वैसे अमर सिंह ने 14 साल सपा को अपनी सेवाएं दी है, इसी भावना के साथ उनको यह पता होना चाहिए कि आज सपा की हालत पतली है और भविष्य में सपा को मुस्लिम वोटों का भी टोटा पड़ सकता है। इसी टोटे की भारपाई करने के लिए आजम खान का मान-मनोहार कर सपा ने उन्हें पार्टी में फिर से शामिल किया है। लम्बे समय से आपसी तानातनी में अमर सिंह और आजम खान के बीच जबानी जंग चल रही है। अपने आप को ‘दलाल’ सुने जाने पर अमर सिंह का कहना है कि ‘‘ मैं 14 साल तक मुलायम सिंह की बैसाखी रहा हूं। अगर मैंने मुंह खोला तो सपा के कई नेता जेल की सलाखों के पीछे होंगे और आजम खान को अपने नेता यानि मुलायम सिंह से पूछना चाहिए कि 14 सालों में मैंने कितनी सप्लाई की।’’ अमर सिंह का अपने बचाव में यह बयान देना कुछ हद तक सही कहा जा सकता है। मगर ‘मुह खुला तो सपा के कई नेता जेल की सलाखों के पीछे होंगे’ वाला बयान इनके लिए परेशानी की वजह बन सकता है, क्योंकि एक पार्टी से 14 साल जुड़े होने बाद अगर वो अपने पास सपा नेताओं को जेल भेजने की वजह रखते हैं, तो कहीं ना कहीं वह अप्रत्यक्ष रूप से उन कारणों में शामिल भी जरूर रहे होंगे और अगर शामिल नहीं है तो चुप क्यों हैं! जनता और पार्टी के हितों से दूर होकर उन्होंने भला क्यों उन नेताओं को बख्श रहा है जिन्हें उनके ही अनुसार, जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिए! वैसे इस समय अमर सिंह उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर लोकमंच के अध्यक्ष हैं।</b></div><div style="text-align: justify;"><b><br />
</b></div><div style="text-align: justify;"><b>खैर, अब सोचनीय मुद्दा है कि राजनीतिक पखवाड़े में जबानी जंग में इस तरह के बयान आम हो गए है और आम लोग भी इस तरह की बयानबाजी से वाकिफ हो रहे हैं। बात सिर्फ गलत शब्दों के इस्तेलाल की नहीं बल्कि राजनीति के प्रति निष्ठा और कर्मठता पर सवालिया निशान भी है कि ‘‘जब तक जिस पार्टी में रहो तो, तब तक मुंह में मिश्री को दबाए रखो और जैसे ही पार्टी से अलग हो तो करेला चबाने लगो।’’ जहां एक ओर इस तरह के बयान राजनीति बहस में बदलते देर नहीं लगती है वहीं विपक्षी पार्टियों व आम लोगों का भी ध्यान आकर्षित करती है। मगर अब लगता है कि पार्टी-पार्टी और नेता-नेता की जंग में इस तरह की भाषा का प्रयोग राजनीतिक एजंेडा बन गया है?</b></div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-50777864727888190502010-12-04T20:20:00.000-08:002010-12-13T04:11:02.665-08:00मुआवजे की आस ताकते भोपाल गैस पीड़ितसाल दर साल बीते गए और बीते 2-3 दिसम्बर को भोपाल गैस त्रासदी की 26वीं बरसी की झलक भी अखबारों में और न्यूज चैनलों में देखी गई। कहने को तो... इस गैस त्रासदी को 26 साल हो चुके हैं, मगर पीड़ितों को उनका हक और हर्जाना देने के नाम पर आज भी रस्मादागी ही चल रही है। देश की सबसे बड़ी इस गैस त्रासदी पर गैस पीड़ितों ने तो अमेरिका से लेकर भारत और मध्य प्रदेश सरकार को जमकर कोसा। ‘‘वैसे गैस कांड पीड़ित इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते हैं। इन पीड़ितों को शायद यह पता नहीं कि वो कोई देश के सांसद नहीं है, जो संसद में हंगामा करें और अपनी उस पीड़ा का हर्जाना ले सके, जो वो और उनकी नई पीढ़ी शारीरिक विकलंागता के रूप में झेल रही है।’’ 26 सालों से लगातार अपने हक की लड़ाई लड़ने और गैस कांड के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन को सजा दिलाने की जद्दोजहद में लगे हैं। बेशक देश और सरकार भूल जाए, लेकिन भोपाल कैसे भूल सकता है 26 साल पहले दो-तीन दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड संयंत्र से जो जहरीली गैस रिसी उसने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था और वहीं हजारों लोग जहरीली गैस से उत्पन्न बीमारियों से जूझने को विवश हैं।<br />
<br />
आखिर कब दिया जाएगा मुआवजा?<br />
<br />
कम नहीं होते 26 साल। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी अगर सरकार मुआवजा राशि देने पर विचार विमर्श करें तो यह बेहद शर्म की बात है कि जिस गैस कांड में 5000 हजार से ज्यादा की जान गई, हजारों बच्चे, बूढ़े, जवान और महिलाएं विकलांग हुई और अभी तक बस इनके नासूर बने जख्मों पर मरहम लगाने की तैयारी चल रही है। आखिर ये कैसी सरकारनीति है? 1984 में इस कांड के लिए मुआवजे को 750 करोड़ रूपए थी, पता नहीं उसमें से कितना मुआवजे के नाम पर पीड़ितों में बाताशे तरह दिया गया है। मतलब मुआवजा भीख की तरह जिन हाथों में दिया गया उनमें पीड़ितों के हाथ भी कम थे। अब केंद्र सरकार गैस कांड पीड़ितों के लिए मुआवजा दुगुना करने की मांग की जा रही है, मगर इसे ‘जले पर नमक झिड़काना’ कहा जाता है। एक तो इन ढाई दशकों में मुआवजा पीड़ितों तक कट-छटकर पहुंचा है, स्वास्थ्य सुविधएं भी बीमार दी गई है वहां पर अगर मुआवजा दुगुना करने की बात आए तो इसे सिर्फ इसी कहावत के आंका जा सकता है। बेशक, भारत सरकार द्वारा इस भयावह गैस कांड के पीड़ितों के लिए मुआवजे की दुगुना रकम बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं। मगर इस पर आम लोगों और गैस कांड पीड़ितों को विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है।<br />
<br />
खैर, भोपाल गैस कांड की इस 26 साल पुरानी भयावह त्रासदी के बाद भी गैस पीड़ितों को अफसोस, गुस्सा और उम्मीद तीनों ही है। जहां उन्हें अफसोस है कि देश में इतनी बड़ी दुर्घटना होने के समय से लेकर अब तक कोई ऐसा निर्णय नहीं लिया, जिससे पीड़ितों को राहत मिली हो, बोलवचन और जबानी महरम के साथ कुछ मुआवजा बांट कर जिम्मेदारी पूरी कर दी गई है। जबकि गुस्सा है कि इस त्रासदी के जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी ‘वारेन एंडरसन’ को सजा न मिलने की और उम्मीद है कि देर से सही लेकिन सरकार भोपाल गैस पीड़ितों रहमत कर उन्हें राहत दे। शारीरिक रूप से बेकर हो चुके गैस पीड़ितों में अभी भी मुआवजे की आस बरकरार हैं।Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-1355908449231885622010-11-27T22:53:00.000-08:002010-12-13T04:11:02.665-08:00कुछ ख़ास तो नही...: देश के लिए ताली और तमाचा साथ!<a href="http://kuchkhastonahi.blogspot.com/2010/11/blog-post_4397.html?spref=bl">कुछ ख़ास तो नही...: देश के लिए ताली और तमाचा साथ!</a>: "वैसे तो... काॅमनवेल्थ्स गेम्स 15 अक्टूबर को खत्म हो चुके हैं, पर अभी तक काॅमनवेल्थ गेम्स का शोर कम नहीं हुआ। एक ओर काॅमनवेल्थ की सफलता का बो..."Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-2992063118819625182010-11-12T08:33:00.000-08:002010-11-12T08:33:20.468-08:00जहां हो गुरू का अपमान वहां भला कैसा सम्मान!बीते दिनों पहलवान सुशील कुमार ने ‘विश्व कुश्ती चैंपियनशिप’ जीती तो भारतीय खेल प्रेमियों को खुशी तो हुई पर रज भी। रज की वजह रही सुशील कुमार के माननीय ‘गुरू सतपाल’ का अपमान। जहां सुशील के विश्व कुश्ती चैंपियन बनने का गर्व है, वहीं उसी चैंपियन के प्राथमिक और परम्परागत गुरू सतपाल का गलत तरीके से अपमान करना वाकई देश के लिए शर्म की बात है। शायद हमारे खेल मंत्री एमएस गिल भूल गए कि एक खिलाड़ी के प्राथमिक व पराम्परागत गुरू का सम्मान कैसे किया जाता है? चैंपियनशिप जीतने के बाद पहलवान सुशील कुमार अपने गुरू सतपाल और सरकारी कोच यशवीर के साथ खेल मंत्री एमएस गिल से भेंट करने उनके निवास पर पहुंचे थे और वहीं पर विश्व चैंपियन के साथ फोटो खिंचवाने और जीत का सारा श्रेय लेने के चक्कर में सुशील के गुरू सतपाल का अपमान कर दिया। दरअसल हुआ यूं कि गिल ने फोटो खिंचवाने के लिए सरकार द्वारा नियुक्त राष्ट्रीय कोच यशवीर को आगे आने के लिए कहते हुए सतपाल को हट जानेे का इशारा किया। यहां मुद्दा ये नहीं है कि कोच यशवीर को ही फोटो खिंचवाने के लिए ही क्यों बुलाया, बल्कि मुद्दा ये है खेल मंत्री ने वाहवाही और सुर्खी में आने के लिए विजेता के माननीय गुरू का अपमान किया। एक शिष्य बेशक विश्व विजेता बन जाएं, लेकिन वो अपने गुरू के सामने हमेशा शिष्य ही रहता है और अगर उसी शिष्य के सामने उसके गुरू के साथ अपमानजनक तरीका अपनाया जाए तो खिलाड़ी का हौंसला बुलंद नहीं हो सकता। वैसे भी ‘जहां गुरू का अपमान हो वहां भला सम्मान कैसे हो सकता है?’ गिल ये कैसे भूल सकते हैं कि बेशक सुशील कुमार ने कोच यशवीर की उपस्थिति में विश्व चैंपियनशिप जीती हो, मगर उस चैंपियन की बुनियाद तो सतपाल ने ही रखी है और सुशील कुमार के आज विजेता होने के पीछे बीते कल और आज में सतपाल की मेहनत को कम नहीं आंका जा सकता। ऐेसा नहीं है कि सुशील के गुरू सतपाल कोई गुमनाम नाम हैं, बल्कि वे खुद 1982 एशियाई खेल में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं और बीते वर्ष उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी नवाजा गया था। इससे बड़ी बात ये है कि खुद सुशील कुमार का कहना ये है कि बचपन से पहलवानी के गुर सिखाने वाले प्राथमिक गुरू सतपाल की वे बहुत इज्जत करते हैं और उनकी श्रद्धा करते हैं, तो इस पर तो खेल मंत्री का कुछ कहना बनता भी नहीं है।<br />
बहरहाल, देश में खिलाड़ियों को मांजने और निखरने से ज्यादा मीडिया में छाने और वाहवाही लुटने की रहती है। उक्त उदाहरण इसके लिए काफी है। अगर खेल मंत्री के रवैये के विपरीत देखें तो पता चलेगा कि बुनियादी और प्राथमिक प्रयासों से जितने खिलाड़ी सफल हुए हैं उनमें से बेहद कम सफल रहे हैं, सरकारी तंत्र से बने खिलाड़ी। क्षमता और विशेषता को आंककर गुरू उन्हें विशेष खेल के खिलाड़ी बनाते हंै सतपाल जैसे गुरू। भारत में क्षमता, विशेषता के बीच खिलाड़ियों की कमी नहीं है, फिर भी युवाओं से लबरेज देश में चुनिंदा खिलाड़ी ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाए हुए हैं, वे अपने बल बदौलत बनाएं हैं न कि सरकारी रहमोकरम पर। सरकार के ढूलमूल रवैये के कारण ही प्रतिभाएं उभर नहीं पाती हैं। अच्छा होगा सरकारी खेल तंत्र प्रतिभावान<br />
खिलाड़ियों की खोज करके श्रेय ले, ना कि जिन गुरूओं ने अपने शिष्यों को आज चमकने लायक बनाया है उनका अपमान करे।Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-24975792456882803892010-11-12T08:31:00.000-08:002010-11-12T08:31:14.641-08:00देश के लिए ताली और तमाचा साथ!वैसे तो... काॅमनवेल्थ्स गेम्स 15 अक्टूबर को खत्म हो चुके हैं, पर अभी तक काॅमनवेल्थ गेम्स का शोर कम नहीं हुआ। एक ओर काॅमनवेल्थ की सफलता का बोलबाला है और दूसरी ओर काॅमनवेल्थ का घोटला है। कुछ भी हो पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काॅमनवेल्थ की सफलता ने भारत की छवि को कलंकित होने से बचा ही लिया और यह भी साबित कर दिया कि काॅमनवेल्थ की सफलता में उभरती भारतीय आर्थिक-व्यवस्था, समृद्धि और विकासशीलता का बड़ा योगदान है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश चमक गया और एक भारतीय होने पर इस समय हर भारतवासी को नाज होगा और होना भी चाहिए। भई, इतनी बड़ी जिम्मेदारी के मेजबानी करना कोई मुंह में पान दबाने जैसा आसान काम तो था नहीं। मगर...अफसोस ये है कि काॅमनवेल्थ की जरूरत व उसकी सफलता ने अपने पीछे कई सवाल छोड़े हैं!<br />
हैरानी की बात है जब लगभग पूरा देश काॅमनवेल्थ गेम्स के गुणगान कर रहा था। उसी दौरान आया एक सर्वे काफी चैंकाया वाला था, दरअसल सर्वे कुछ यूं था ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2010 में भारत को 67 वां स्थान है’ और उसपर सोने पर सुहागा ये था कि ‘भुखमरी में भारत, चीन 9 वें स्थान और पाकिस्तान 52 वें स्थान से भी पीछे है।’ आश्रय साफ है कि चीन को इस सूची में 9 वां स्थान मिलना, भारत से बेहतर स्थिति को दर्शाता है वो भी तब, जब चीन की आबादी भारत से काफी ज्यादा है। पता नहीं इस पर हसी आनी चाहिए या गंभीर होना चाहिए। क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे शक्तिशाली देशों की सूची में भारत का नंबर-3 है और भुखमरी में 84 देशों की इस सूची में भारत का नंबर 67! ये कैसा शक्तिशाली देश है जो शारीरिक रूप से<br />
भूखा, कमजोर और कुपोषित है! ये कैसा अमीर देश है जहां 45 करोड़ गरीब भूखे सोते हैं! सोचो जरा... कि हम अमीर देश की गरीब जनता है जिनकी स्थिति दशकों से नहीं बदली! जबकि इस भुखमरी के लक्षित रोग कुपोषण, शिशु मृत्यु दर जरूर विकराल होती जा रही है...!<br />
देश में काॅमनवेल्थ की जरूरत थी... तो जो काम राजधानी में 4 पहले होने चाहिए थे, वो 4 महीने में पूरे किए गए...! दिल्ली को नई-नवेली दुल्हन की तरह महज आखिरी कुछ दिनों में सजा दिया...! बारीक अनुमान, तो वैसे कुछ और ही माने जा रहे हैं पर मोटा अंदाजा ये है कि काॅमनवेल्थ में करीब 70,000 करोेड़ रूपए खर्च किए गए...! 71 देशों के 6000 खिलाड़ियों के लिए सैंकड़ों वैरायटी खाने में परोसी गई, उच्च नहीं सर्वोच्च स्तर की सुविधाएं भी काबिले तारीफ थी। वैसे ‘काॅमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी करना देश की एक सकारात्मक उपलब्धि है’, जबकि देश का ‘भुखमरी में 67 वां स्थान पर पाना दूसरी अनचाही उपलब्ध् िहै...!’ काॅमनवेल्थ की सफलता के बाद भी क्या ये मान लिया जाए कि देश में रोजाना करीब 5000 बच्चों का कुपोषण और भूख की भेंट चढ़ना सही है? अब तो ये भी नहीं लगता की देश आर्थिक रूप से कमजोर है और ना ही ये लगता है देश में अनाज कमी है! बल्कि कमी है जरूरत को तवज्जो देने की? और जरूरतों को प्राथमिकता देने का श्रेष्ठ उदाहरण यही हो सकता है कि जहां हर साल लाखों टन अनाज जगह के अभाव, आर्थिक व्यवस्था, अनदेखी और लापरवाही के भंेट चढ़ता। उसी के चलते हर साल करोड़ लोग भुखमरी से मरते हैं। ठोस व्यवस्था के अभाव में साल-दर-साल की यही कहानी है। किंतु वहीं सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता...क्योंकि प्राथमिकता का गहन अध्ययन कर ‘कुछ दिन की शान के लिए अरबों की कीमत के स्टेडियम तैयार करना और दिल्ली को फिर पुर्ननिर्माण करना ज्यादा सस्ता हैं।’<br />
खैर, काॅमनवेल्थ की सफलता के जश्न में हम भी शामिल हैं, पर बस एक भारतीय होने नाते, ना की देश के एक आम नागरिक होने के नाते... क्योंकि इस समय, इस बात से बिलकुल इंकार नहीं किया जा सकता है कि जब देश में काॅमनवेल्थ की सफलता के तालियां बजायी जा रही थी, तभी देश में भुखमरी का तमाचा भी मरा गया था, वो बात अलग है कि इस तमाचे आवाज और सूजन पर अभी तक किसी का ज्यादा ध्यान नहीं गया है!Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1097954662634523693.post-54265508453538616832010-11-12T08:29:00.000-08:002010-11-12T08:29:07.670-08:00‘संदेश’ में झलकते संदेहजनक नहीं ‘सच्चे’ हालातआज के भागते और विकास करते भारत के लिए हर तारीफ कम है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप बनाए हुए है। यहां की संस्कृति और रिवाजों की दुनिया भर में मिसाल दी जाती है। मगर यह सिक्के का एक पहलू है जिस पर हम गर्व करते हैं जबकि इसका दूसरा पहलू कुछ अलग है जिन्हें महज कुछ ही पंक्तियों मेें सहज ही बयां कर सकते हंै कि बेशक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘संदेश’ देने के लिए ‘भारत’ को उदाहरणार्थ लिया जाता रहे, लेकिन कभी मात्र कुछ लाइन के मोबाइल ‘संदेश’ में पूरे भारत की ‘वो असली तस्वीर’ बनकर तैयार हो जाती है। जिसके भद्दे रंग उस हर चमकती रंगत को धूमिल कर देते हंै, जिसपर आप और हम घमंड करते हैं। वाकई गौर करने वाली बात है कि क्या ‘ये भारत की उज्जवल तस्वीर’! जहां कार लोन 8 प्रतिशत के ब्याज पर मिलता है और एजुकेशन लोन 12 प्रतिशत का ब्याज दर से लेना पड़ता है? मतलब यहां विलासता, विद्या पर हावी है। मेरा भारत महान है कि यहीं पर दाल-चावल 80 रूपए किलो मिल रहा है और मोबाइल सिम सिर्फ 10 रूपए में खरीदी जा रही है? जाहिर है कि यहां भी सबसे मूल जरूरत का कोई मोल नहीं। क्या दुरूस्त व्यवस्था है कि पिज्जा डिलीवर 30 मिनट यानी अपने टाइम लीमट में हो जाता हैै, जबकि पुलिस और एंबुलेंस कभी वक्त पर नहीं पहुंचती? क्या जागरूकता है कि चाय की दुकान पर बैठकर आप और हम कहते हंै कि बाल श्रम कराने वालों को सूली पर चढ़ा दिया जाना चाहिए और दूसरे ही पल कहते हैं कि छोटू दो चाय तो ला? इसी देश में सानिया-शोएब की शादी मीडिया में हफ्तों तक सुर्खिंया बटोरती हैं, जबकि नक्सलियों के कहर की कहानी चंद मिनटों में सिमट जाती है? इसी अमानवीयता के चलते पांच सालों में करीब 11 हजार लोगों ने नक्सली हमलों में अपनी जान गवाई है। यही हाल है भारत का! शब्दों का हेरफेर करें या इस लाइनों को छोटा कर दें, पर इससे भारत की बद्सूरत तस्वीर में दिखती कल की तकदीर को बदला नहीं जा सकता। ऐसे ना जाने कितने ही उदाहरणों की चर्चा की जा सकती है कि सात मुख्य बड़ी नदियों के देश में करीब डेढ़ लाख गांव पीने के पानी के लिए तरसते हैं, कृषि में अव्वल देश में करीब साढ़े छह लाख गांव है जिनमें से करीब 72 प्रतिशत गांव के किसान अपनी खेती के लिए केवल बारिश के पानी पर निर्भर रहते हैं। 20 करोड़ गरीब जनता की दशकों से 50-70 रूपए की मामूली दैनिक आय नहीं बढ़ी, लेकिन सांसदों की औसत सम्पत्ति 1.87 करोड़ से बढ़कर 5.33 करोड़ जरूर हो गई है। लेकिन गरीबी का आंकड़ा हाल की 1.50 करोेड़ गरीब लोगों की बढ़ोत्तरी के साथ मालामाल है अब ताजे अनुमान के मुताबिक करीब 40 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे है, जबकि सत्ता का खेल खेलने वाले सांसदों का एक बड़ा प्रतिशत करोड़पति है।<br />
बच्चों को कल का नेता कहना तो सबको अच्छा लगता है, लेकिन सच तो हकीकत से परे है क्योंकि देश के 50 प्रतिशत बच्चे बचपन के अधिकार से महरूम है, करीब दो करोड़ बच्चे खतरनाक उद्योगों में काम कर रहे हैं और एक सरकारी अनुमान के अनुसार, देश में बाल श्रमिकों की संख्या 1 करोड़ 70 लाख है। जबकि एक नीजि संस्था के स्वतंत्र अनुमान के अनुसार, अगर स्कूल के बाहर सभी बच्चों को बाल श्रम समझा जाएं तो करीब 10 करोड़ से ज्यादा का आंकड़ा बैठता है। अब इसी से अनुमान लगया जा सकता है कि देश के कितने बच्चे गरीबी के चलते स्कूल नहीं जा पाते हैं। भूखे पेट करवटें बदलने वाली करोड़ों गरीब जनता के देश में लाखों टन अनाज लापरवाही की भेंट चढ़ा दिया जाता है, बात जयपुर, उदयपुर और गाजियाबाद की ले लीजिए। कहीं अनाज के गोदाम को मयखाना बनाने के लिए अनाज को बाहर निकाल फेंका दिया, तो कहीं बेहद लापरवाही के चलते बारिश में करोड़ों रूपए का अनाज एकदम बेकार हो गया!<br />
बहरहाल, इन सब लापरवाही और गलत दिशा में होते विकास पर बस अफसोस ही जाहिर किया जा सकता है क्योंकि हमने अपनी जागरूकता को त्याग रखा है। वैसे भी जागरूकता का कोई संगठित मापदंड भी नहीं रह गया है, क्योंकि सबको अपनी-अपनी डबली और अपना-अपना राग ही सुहा रहा है। एक तो देश की राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर ताने कसने से बाज नहीं आती है और दूसरी ओर आम जनता महंगाई के साथ-साथ और समस्याओं को लेकर रोती रहती है। बस, ऐसे ही सब चल रहा था और चल रहा है और चलता रहेगा? क्योंकि जब देश के हालात आजादी के समय से लेकर अब तक नहीं बदले। बल्कि 62 सालों में जमीनी विकास बद् से बदतर हो गए हैं तो भविष्य में इन्हें बदलने की कोई उम्मीद नहीं लगाई जा सकती! <br />
<div><br />
</div>Anju singhhttp://www.blogger.com/profile/16211361372892357499noreply@blogger.com0