हमारे देश में सब कुछ है, बस थोड़ी सी परेशानी ये है कि आम आदमी महंगाई से परेशान, रोजगार में नाकाम, कुपोषण से ग्रस्त, गरीबी से बेहाल और शिक्षा से अब भी बड़ी संख्या बेजार है, बाकी सब ठीक -ठाक है...! वैसे बेचारा देश भ्रष्टाचार में जकड़ हुआ है, घोटालों ने देश की जनता को नींबू की तरह निचोड़ रखा है बस... और सब एक दम दुरूस्त है कुछ परेशानी नही...! क्यों सही कहा न...! लगता है आप थोड़ा सा भ्रमित हो गए हैं? आप सोच रहे हैं कि पता नहीं मैं क्या कहना चाह रही हूं...! दरअसल मैं अपने देश और अपने देश की आम स्थिति को समझने की कोशिश कर रही हूं। नेताओं की बातें समझने की कोशिश कर रही हूं कि वो आखिर कहना क्या चाह रहे हैं? मतलब, अभी-अभी अन्ना हजारे ने जिस तरह से देश में होते भ्रष्टाचार की नाक में नकेल डालने की कोशिश की वह वाकई तारीफ के लायक है। मानना पड़ेगा कि मात्र पांच-छह दिन में इस ‘आमरण अनशन’ व ‘जनलोकपाल बिल’ को पास करवाने के लिए भारतीयों का जो समर्थन मिला वह कमाल का था और कहीं ना कहीं देश को इस तरह के आंदोलन की जरूरत तो ‘खल’ रही थी। जहां अन्ना हजारे के साथ आम आदमी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘हल्ला बोल’ रहे हैं, वहीं कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी कहना चाहते है कि ‘‘अन्ना जी, राजनीति और भ्रष्टाचार हैं भाई-भाई प्लीज, कुछ ना बोले..?’’ मतलब उनका कहना है कि ‘‘राजनीति बिना भ्रष्टाचार के नहीं चल सकती, यानी राजनीतिक पार्टियों को चलाने के बहुत ज्यादा धन की जरूरत होती है और उस धन की कमी को भ्रष्टाचार से ही पूरा किया जाता है। इनका यह भी कहना है अगर इस समय गांधी जी भी होते तो वो भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं होते, जिसके कारण वे भ्रष्टाचार कर राजनीति करते या फिर राजनीति छोड़ देते...!’’ वैसे इन्होंने इतना कहने के बाद ‘इस बात का आशय गलत समझे जाने पर इस पर सफाई भी दी है। मगर इस बात में सच्चाई तो है, मुझे ये तो नहीं पता की आप इस बात से सहमत है या नहीं, पर मैं तो सहमत हूं!
देखिए, राजनीति में भ्रष्टाचार की जरूरत तो है, राजनीति कोई बच्चों का खेल तो नहीं, जो बस आभासी खिलौने भर से खेलकर मन को खुश कर दे! राजनीति कोई देश सेवा भी नहीं है जो कर्म की बुनियाद पर देश के हित में सोचे और आम जनता के दिलों पर राज करे! और हां, राजनीति आप की अपनी गृहस्थी भी नहीं है जिसमें आप मर्यादा, संस्कार, सुविधा, जरूरत और समृद्धि का
देश के हित में सोचा है। आज की आधुनिक सेवाभाव सोच यानी राजनीति से वो कोसो दूर रहे, शायद इसलिए भ्रष्टाचार करने की जरूरत नहीं पड़ी होगी! अगर देश के नेता और सरकार वाकई इस गांधीवादी सेवा भाव को अपना लें, तो भ्रष्टाचार तो अपने अपने आप ही खत्म होने लगेगा, नहीं तो राजनीति की इधर-उधर की चालों में भ्रष्टाचार भी अपने आप छिपाने की जगह ढूंढ ही लेगा...!
नमस्कार जी, मैं हूं अंजू सिंह, अभी तक का बस मेरा परिचय इतना ही है। मेरा ब्लाग जैसे नाम से पता चल गया होगा ‘कुछ खास तो नहीं’ बस यही सच है। साधारण सोच के साथ लिखना शुरू किया है और साधारण सोच को शब्दों में बदलना चाहती हूं। सामाजिक और जनचेतना से जुड़े सवालों पर सवाल करना मुझे पसंद है। स्वभाव से कुछ कठोर और बातों से लचीली हूं, फिर भी सबकी सोच को सुनना मुझे रास आता है। अगर आप मेरे लेख को झेल पाएं तो मेरी लेखनी को दम मिलेगा और नहीं झेल पाए तो मुझे और साधारण रूप से लिखने का दम भरना पड़ेगा...