09 जनवरी, 2011

क्यों कह दें इन्हें सुंदर…!

इस कविता के भाव मंदिरा बेदी या बिपाशा पर भड़ास निकालना नहीं है, बल्कि यह कविता ‘नग्नता’ का वह पर्यायवाची शब्द बता रही है, जिसे आप और हम ‘बोल्डनेस’ कहते हैं। सभी चाहते है कि इस भागते और विकास करते वक्त में सभी ‘बोल्ड’ हो…. पर विचारों और व्यवहार में। क्योंकि हद से ज्यादा होती ‘बोल्डनेस’ उर्फ ‘नग्नता’ का बोझ शायद हमारी भारतीय संस्कृति भी ना उठा पाएंगी। क्यों मैं ठीक कह रही हूं ना?



भला क्या होता जा रहा है भारतीय ‘संस्कृति’ को,
और ये कैसा रोग लगता जा रहा है भारतीय ‘नायिकाओं’ को!

कभी भारी और शालीन कपड़ो से सजना था इनका ‘शौक’,
अब भला क्यों लगने लगा है इनको हल्के कपड़ों से भी बोझ!
पहले ‘वोग’ के लिए मंदिरा ने खिसका दिया अपना टाॅप,
और अब बिपाशा ने ‘मैक्सिम’ के लिए किया है सेम वही जाॅब!
कभी गुजरे वक्त में सुंदरता का ‘आंकलन’ था मन की सुंदरता,
तो क्यों आज ‘नंगे’ शरीर को बना दिया है खूबसूरती का पैमाना!
जब ‘धीर’ मन में नंगा शब्द मचा देता है अधीरता,
तो… क्यों खुद का नंगापन आंखों में ‘शर्म’ नहीं दिखाता!

भला क्यों, आंशिक रूप से ढके शरीर को ‘कह दें’ सुंदरता,
जब… बच्चों और बड़ों के समक्ष उन्हें देखने से ‘आंखें चुराए’!!

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