देश में वैसे मुद्दे तो बहुत बड़े-बड़े हैं, जिनपर बात और बहस की जा सकती है। जैसे-वल्र्ड कप, भ्रष्टाचार, राजनीति मसले, कालाधन, आतंकवाद, गरीबी या शिक्षा। ये सभी अपनी जगह अहम है। लेकिन एक दूरगामी सोच का सफर तय किया जाए तो सबसे बड़ा मुद्दा इस समय भारतीय जनगणना का है। 2001 के बाद हुई 2011 की जनगणना थोड़ी हैरान करने वाली है। भारतीय विकास के आधुनिक दस साल में इस बार फिर देश की सोच औेर शिक्षा के दर्शन करने को मिले हैं। बीते मार्च की आखिरी तारीख को भारतीय जनगणना में बताया गया कि ‘इस बार भारतीयों की गिनती 1.21 अरब हो गई है।’ यानि बुलंद भारत की विशाल तस्वीर... वैसे भारत ने 2001 में 1 अरब़ से कुछ ही ऊंची जनसंख्या को पार करते हुए इन दस सालों में 18 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या का इजाफा किया। यानि सबकुछ दुरूस्त है, मतलब 1991 की गणना में जनगणना में लगभग 23 प्रतिशत की वृद्धि नोट की गई थी, जबकि 2001 में 21 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई थी।
वैस विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार 17 फीसदी की वृद्धि के साथ भारत की 1.21 अरब की आबादी है जोकि की आंकड़ों के मद्देनजर कुछ कम भी नहीं है क्योंकि अमेरिका, इडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल आबादी को अगर मिला दिया जाए, तो भी भारत की आबादी इस संख्या से ज्यादा है। मगर संतुष्टि इस बात की है कि इस बार भारतीय लोगों में कुछ हद तक जागरूकता तो जरूर आई है तभी तो इस बार छोटा ही सही लेकिन दो दशकों में बढ़ी जनसंख्या के बाद भी वृद्धि का प्रतिशत कुछ कम ही हुआ है।
मगर अफसोस है कि जहां जनसंख्या का प्रतिशत कम रहने से जागरूकता के आयाम भारतीय जनता के बीच देखने को मिले हैं वहीं दूसरी और घटते लिंग अनुपात ने चिंता की नई वजहों को जन्म दिया है। मतलब, बढ़ती जनसंख्या में लड़के और लड़की के अनुपात (लिंगी अनुपात) में काफी अंतर देखने को मिला है। अभी तक यह संतुष्टि जताई जा रही थी बेशक छोटा फर्क ही सही, लेकिन बढ़ी जनसंख्या में कम वृद्धि होना शुभ संकेत तो है, जबकि लिंग अनुपात की गड़बड़ाती गिनती ने भारतीय समाज की उस छोटी और अमर्यादित सोच का भी खुलासा किया है, जो आज भी लड़कियों को पैदा होने से पहेले ही खामोश कर देती है। सूत्रों के मुताबिक, पिछली जनगणना में जहां 1000 पुरूषों पर महिलाओं की संख्या 933 थी, जो इस दशक में 1000 पुरूषों पर महिलाओं की संख्या घटकर 914 है। इन आंकड़ों को महज साधारण आंकड़ें कहकर पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता, क्योंकि भारतीय समाज के वरिष्ठ विद्वानों का मानना है कि इस तरह से लिंग अनुपात भारतीय समाज में कई प्रकार के अपराधों को विकराल बना सकता है, एक ओर तो पहले से ही समाज में लड़कियों को बोझ समझकर उन्हें दुनिया में ‘ना लाना’ बड़ा अपराध है, फिर उस पर लड़कियों और महिलाओं को लेकर रोज-रोज होते अपराधों में निश्चित तौर पर वृद्धि होगी ही। मूल रूप से कहा जा सकता है कि भारत में बेशक दो दशकों में जनसंख्या का आंकड़ा गिरा हो लेकिन, लिंगानुपात का आंकड़ा गिरने से महिला जगत से जुड़े अपराधों की गिनती बढ़ायेगा ही...