हम भारत की विविधता के कारण जाने जाते हैं, ढेरों भाषाएं व भिन्न-भिन्न संस्कृति के रंग भारतीयता की पहचान है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत एक ऐसा उभरता पूंजीवादी देश है, जहां पर विकास की संभावनाएं अपार है। और शायद इसीलिए हर देश भारत को अपने सांचे में उतरना चाहता है। हाल ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का आना और भारी-भरकम नौकरी का प्रलोभन देकर अपना काम करके चलते बने। अब आए हैं फ्रांस के राष्ट्रपति निकोल सरकोजी। उन्होंने भी कहीं न कहीं भारतीय अर्थव्यवस्था का फायदा उठाने का मूड बनाया ही होगा। वैसे, यह भारत का वह एक तरफा पहलू है जिसे अन्य शक्तिशाली देश लाभ लेना चाहते हैं, मगर इसका दूसरा पहलू तो खुद भारत को सवालों के घिरे में खड़ा करता है। भारत भ्रष्टाचार के मामले में अन्य देशों से काफी आगे है। कुछ सालों में घोटालों की कई पोल खुली है कि समझ नहीं आ रहा कि पहले किसको समझे! आम नजरिए के अनुसार, सभी घोटालों का घालमेल भारतीय ‘राजनीति की घोटालेबाजी’ की ओर भी इशारा कर रही है। सबसे ताजा घोटाले के तौर पर 2 जी स्पैक्ट्रस घोटाला। जिसके कारण केंद्र सरकार सवालों के घेरे में खड़ी है। आए दिन विपक्षी पार्टियों केंद्र पर दबाव बनाने के हथकंडे अपना रही है। पर क्या आप को पता है कि ‘2 स्पैक्ट्रम घोटाले में 39 अरब के घोटाले की बात सामने आ रही है, मगर इस नुकसान से अलग संसद, सरकार और देश की आर्थिक स्थिति को नुकसान हो रहा है, उसका क्या होगा? ’ क्योंकि 9 नवंबर संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका है और अब तक 16 संसद सभा हो जानी चाहिए थी, मतलब देश के अन्य गंभीर मुद्दों व समस्याओं के निवारण के लिए संसद में उठाना चाहिए था। लेकिन अफसोस है कि संसद की कार्यवाही में 2 स्पैक्ट्रम घोटाला आगे बढ़ने ही नहीं दे रहा है। दरअसल, विपक्षी पार्टियांे ने केंद्र पर इस समय जो दबाव 2 स्पैक्ट्रम घोटाले के कारण बनाया है, उसे वह बिना नतीजा नहीं जाने देना चाहती है। चाहे फिर इसके लिए कितना भी नुकसान क्यों ना हो?
अब बात अगर संसद की कार्यवाही के दौरान खर्च की जाए तो पता चलता है कि संसद की प्रति बैठक का खर्च करीब 8 करोड़ बैठता है। और हिसाब लगाया जाए तो 16 बैठकों का खर्च अनुमानित 1 अरब से ज्यादा होना चाहिए। अब सांसदों और विपक्षी पार्टियों को कौन समझाएं कि जिस तरह से संसद की कार्यवाही नहीं होने के कारण प्रति बैठक नुकसान हो रहा है इसको भी तो ‘इनका मिश्रित घोटाला’ कहा जा सकता है। केंद्र के विपक्ष में खड़ी पार्टियों को पार्टी हित से अलग आम लोगों व देश से जुड़ी अन्य समस्याआंे पर ध्यान देना चाहिए। खैर, इनको समझाना बेकार है, क्योंकि घोटालों की गंदगी साफ करने की कोशिश में यह भी देश व देश की आम जनता के साथ उनकी मांगों और समस्याओं का घोटाला कर रहे है।
अगर हम थोड़ा सोचे और घोटालों के पन्ने पलटे तो पता चलेगा कि देश में जल्दी जल्दी कई घोटाले हुए है पर अभी तक कोई भी निर्णयक स्थिति में नहीं है। जैसे-
2जी स्पैक्ट्रम का आवंटन घोटाला - जिसमें 39 अरब का नुकसान हुआ। इस घोटाले पर लम्बे समय तक पर्दा डालने का प्रयास किया गया। आखिर में भारी दबाव के चलते संचार मंत्री ए. राजा से त्यागपत्र मांगा गया और केंद्र को भी आड़े हाथों लेने की विपक्ष की तैयारी जोरो पर है।
हाउसिंग लोन घोटाला - एक वर्ष की जाँच के बाद सीबीआई ने एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस के प्रमुख सहित आठ लोगों को गिरफ्तार किया। जिसमें कई नामी बैंकों के शीर्ष पदाधिकारियों पर शिकांजा कसा जा रहा है। अनुमान है कि यह घोटाला कई हजार करोड का हो सकता है।
कॉमनवेल्थ खेल घोटाला - हाल फिलहाल ही तो दिल्ली काॅमनवेल्थ का भूत उतरा है। मगर इसके साथ अन्य कई घोटालों के दानव खड़े हो गए हैं। निर्माण कार्यों में अवांछित देरी और अनाप शनाप खर्चों ने भारतीय ऑलम्पिक संघ, दिल्ली सरकार, दिल्ली विकास प्राधिकरण और दिल्ली नगर निगम सहित केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय को भी कठघरे में खड़ा किया। बजट से कहीं ज्यादा खर्च करने के घोटाले में सीबीआई जांच कर रही है।
आदर्श सोसाइटी घोटाला - कारगिल के शहीदों के परिवारवालों के लिए बनी इस सोसाइटी पर कांग्रेस पार्टी के नेताओं, बाबुओं और सेना के ऊपरी अधिकारियों ने कब्जा कर लिया। स्वयं मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण इस घोटाले में फंस गए और उन्हें इस्तीफा देना पडा। यह सोसाइटी मुम्बई के एक सबसे महंगे इलाके में बनी है। यह इमारत कई अन्य विवादों में भी फंसी है। आरोप है कि बिल्डर ने पर्यावरण संबंधित तथा जमीन संबंधित कानूनों पर ध्यान नहीं दिया।
सत्यम घोटाला - सत्यम घोटाले से भला कौन परिचित नहीं है कि सत्यम कम्प्यूटर्स के संस्थापक रामलिंग राजू की चिट्टी से ऐसा भूचाल आया कि शेयर मार्किट भी औंधे मुंह गिर पड़ा। दरअसल, उन्होनें लिखा कि किस तरह से वर्षों तक कम्पनी ने लाभ अर्जित करने के झूठे आँकडे दिखाए। 1 बिलियन के लगभग इस घोटाले को भारत का एनरोन भी कहा जाता है ।
हर्षद मेहता घोटाला - 1992 में बोम्बे स्टोक एक्सेंज में तूफान सा आ गया था। संसेक्स तेजी से ऊपर चढ रहा था। परंतु पर्दे के पीछे का खेल कुछ और ही था। कई भारतीय शेयर दलालों ने इंटर बैंक ट्रांसेक्शन के साथ बाजार को उफान पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें कई देशी और विदेशी बैंकें, बाबु और नेता भी शामिल थे। जब इस घोटाले से पर्दा उठा तो दो महिने के भीतर बाजार 40। तक गिर गया और लोगों के लाखों-करोड़ों रूप डूब गए।
बोफोर्स तोप घोटाला- भारत ने जब स्वीडन से बोफोर्स तोप खरीदी तब आरोप लगा कि इस तोप को खरीदने के लिए दबाव बनाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नजदीकी लोगों को रिश्वत दी गई थी। इस घोटाले की वजह से कांग्रेस का विभाजन हुआ और 1989 के आम चुनावों में पार्टी की हार हुई। यह केस वर्षों से चल रहा है और शायद वास्तविकता कभी सामने ना आ पाए।
तो ये अपने विकासशील देश का दूसरा पहलू। जो घोटालों और भ्रष्टाचार के पूरी तरह लैस है। देश और आम लोगों का पैसा घोटाले के बड़े पेट में समा गया। निराशा है कि जिस देश की विकासशीलता के दावे विश्व करता है, वहां पर घोटाले व भ्रष्टाचार के ऐसे जाल बिछे है जिन्हें अभी तक काटा नहीं गया है। अगर साधारण शब्दों में कहा जाए तो सिर्फ इतना काफी है कि अब देश में घोटाला नहीं बल्कि घोटाले में देश है और इसे से ये प्रदर्शित होता है कि ‘ ये है घोटाले के पेट में विकसित होता भारत।’ सरकारी और गैरसरकारी घोटालों से भरपूर देश की ये एक भयानक छवि है। जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
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