घोटाला. घोटाला.. और घोटाला...! भारतीय होने के नाते यह कहना बड़ा अफसोस भरा है कि भारत की कार्यनीति और राजनीति का घोटाले सबसे ज्यादा आम व गरीब जनता की मुश्किलें बढ़ता है। अभी 2जी-स्पैक्ट्रस मामले पर संसद में गर्मी खत्म नहीं हुई है कि उत्तर प्रदेश में एक और बड़ा खाद्यान घोटाला सामने खड़ा हुआ है। अब देश के सबसे बड़े खाद्यान्न घोटोले में उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मामले की जांच कर रही सीबीआई को छह महीने की मोहलत देने के साथ उत्तर प्रदेश को भ्रष्टतम प्रदेश करार दिया। इस अनाज घोटाले में पीडीएस पर गरीबों में अनाज न बांटकर उसको बांग्लादेश और नेपाल को बेच देने का आरोप है। दरअसल, 2003 से 2007 के बीच उत्तर प्रदेश के कई जिलों से हजारों टन अनाज जो करीब 3000 करोड़ का था, उसे अवैध रूप से बेच दिया गया था। सूत्रों के अनुसार, घोटालें की इस हांडी में उत्तर प्रदेश के कई नेता और बाबूओं ने जमकर करछी चलाई। उन्होंने गरीबों के पेट पर लात मार कर अनाज को बाहर बेच दिया और भूखी जनता को भूख से तड़पने पर मजबूर कर दिया। 3000 करोड़ के इस खाद्यान्न घोटाले के रोशनी में आने के बाद अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले की सीबीआई से जांच के आदेश दिए हैं। ताकि इस घोटाले में शामिल उत्तर प्रदेश के नेताओं, बाबूओं और कारोबारियों की तिकड़ी पर लगाम कसी जा सके। वैसे, कहने को सीबीआई एक स्वतंत्र संस्था है लेकिन सीबीआई में राजनीतिक घुसपैठ ने इसे भी राजनीति की तरह भ्रष्ट बना दिया है। बहरहाल उच्च न्यायालय द्वारा खाद्यान घोटाले में संज्ञान लिए जाने के बाद कहीं न कहीं यह उम्मीद जगी है कि इस मामले पर से पर्दा जल्द उठेगा और घोटाले में शामिल अधिकारी और राजनेता बेनकाब होंगे। ये तो है अनाज घोटाले की बात जिस पर कानून कार्यवाही कर रहा है, मगर एक अलग मामला ये भी है कि इस तरह की घपलेबाजी से अलग भी हर साल करोड़ो-लाखों टन अनाज लापवाही की भेंट चढ़ जाता है। इसी साल एक के बाद एक अनाज सड़ने के बहुत बड़े आंकड़े सामने आए हैं। थोड़ा हो-हल्ला होने के बाद अब यह मामला भी लगभग ठंडा ही हो गया। सवाल बनता है कि 2003 से 2007 में करोडों़ टन अनाज को अवैध रूप से बेचने वालों पर लगाम कसना जरूरी है, लेकिन साल दर साल लाखों टन अनाज जो सड़ जाता है उसपर भी ठोस कार्यवाही की जानी चाहिए। खरबूजा देख खरबूजा रंग बदलता है! मतलब देश में या तो अवैध रूप से नेता अपनी जेब भरते हैं और अगर ऐसा नहीं कर सकते तो हर व्यवस्था को राम भरोसे छोड़ देते हैं। वो भी इतनी सफाई से कि किसी को गंदगी महसूस ना हो। ऐसे कारनामों का ही नतीजा है कि करोड़ों की भूख को शांत करने वाला अनाज मौसम, लापरवाही और जगह की कमी के कारण सड़ा दिया जाता हैं। नहीं तो बाहरी बाजार में बेच दिया जाता है।
अनाज है भूरपूर फिर भी भूखे सबसे ज्यादा
भारत कृषि प्रधान देश है यह आप और हम जानते है। देश में जिस बड़े स्तर पर कृषि होती है, उसके बराबर का स्तर भारत में भूखों का भी हैं। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (आईएफपीआरआई) के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार भारत में भूख की समस्या चिंताजनक स्तर तक पहुंच गई है। यहां तक भारत की स्थिति अफ्रीका के अति भूखे 25 देशों से भी बद्तर है। भूख और अपर्याप्त भोजन की वजह से भारतीय बच्चों में कुपोषण और 5 साल से कम उम्र की बाल मृत्यु 50 प्रतिशत है। महिलाओं भी शारीरिक रूप से कमजोर पाई जाती है। गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, असमान विकास की उपर्युक्त स्थितियां भी ऐसे घोटालों और अव्यवस्थाओं का ही नतीजा हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश में औसत से अधिक अनाज उपलब्ध रहता है, करोड़ों टन अनाज आगामी सालों के लिए सुरक्षित किया जाता है ताकि आने वाले समय में देश में कोई भूखा न रहे। मगर ऐसा होता नहीं है जानकार हैरानी होगी की रोज देश की 25 करोड़ गरीब जनता भूखे पेट सोती है। आम लोगों से जुड़े मामले भी संसद में टिक नहीं पाते हैं। संसद मे भी जिन मामलों से पक्ष-विपक्षी पार्टियों को घेरा जा सकता है उनकों ही जस का तस रखा जाता है। सरकार के पहरेदारों को देश की भूख और भूखी गरीब जनता के मुद्दों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसलिए इस देश मंे भूखी गरीब जनता के हालत कभी नहीं सुधरे और ना ही कभी सुधरेंगे!