भला क्या होता जा रहा है भारतीय ‘संस्कृति’ को,
और ये कैसा रोग लगता जा रहा है भारतीय ‘नायिकाओं’ को!
और ये कैसा रोग लगता जा रहा है भारतीय ‘नायिकाओं’ को!
कभी भारी और शालीन कपड़ो से सजना था इनका ‘शौक’,
अब भला क्यों लगने लगा है इनको हल्के कपड़ों से भी बोझ!
अब भला क्यों लगने लगा है इनको हल्के कपड़ों से भी बोझ!
पहले ‘वोग’ के लिए मंदिरा ने खिसका दिया अपना टाॅप,
और अब बिपाशा ने ‘मैक्सिम’ के लिए किया है सेम वही जाॅब!
और अब बिपाशा ने ‘मैक्सिम’ के लिए किया है सेम वही जाॅब!
कभी गुजरे वक्त में सुंदरता का ‘आंकलन’ था मन की सुंदरता,
तो क्यों आज ‘नंगे’ शरीर को बना दिया है खूबसूरती का पैमाना!
तो क्यों आज ‘नंगे’ शरीर को बना दिया है खूबसूरती का पैमाना!
जब ‘धीर’ मन में नंगा शब्द मचा देता है अधीरता,
तो… क्यों खुद का नंगापन आंखों में ‘शर्म’ नहीं दिखाता!
तो… क्यों खुद का नंगापन आंखों में ‘शर्म’ नहीं दिखाता!
भला क्यों, आंशिक रूप से ढके शरीर को ‘कह दें’ सुंदरता,
जब… बच्चों और बड़ों के समक्ष उन्हें देखने से ‘आंखें चुराए’!!
जब… बच्चों और बड़ों के समक्ष उन्हें देखने से ‘आंखें चुराए’!!