कभी समाज के दरमियान से झांकती है औरत,
कभी अपने आप को समाज से आंकती है औरत,
कभी रीति-रिवाजों की जंजीरों को तोडती है औरत,
तो कभी अपनी मर्यादा को खुद छोडती है औरत…
कभी अपने आप को समाज से आंकती है औरत,
कभी रीति-रिवाजों की जंजीरों को तोडती है औरत,
तो कभी अपनी मर्यादा को खुद छोडती है औरत…
कभी परायों के बीच में तड़पती है औरत,
कभी दुखों में दिन-रात सिसकती है औरत,
कभी मुस्कराहट बन कर खिलती है औरत,
तो कभी असभ्यता के धूप में झुलसती है औरत…
कभी दुखों में दिन-रात सिसकती है औरत,
कभी मुस्कराहट बन कर खिलती है औरत,
तो कभी असभ्यता के धूप में झुलसती है औरत…
कभी नये जीवन की संस्कार है औरत,
कभी संतान के लिए अहम् विचारक हैं औरत,
कभी गुणों और सभ्यता की धारक हैं औरत,
तो कभी हर दुखों की दर्द निवारक हैं औरत…
कभी संतान के लिए अहम् विचारक हैं औरत,
कभी गुणों और सभ्यता की धारक हैं औरत,
तो कभी हर दुखों की दर्द निवारक हैं औरत…
कभी घर-परिवार का समर्पण है औरत,
कभी अपने आप को ही अर्पण है औरत,
कभी गृह लक्ष्मी तो कभी अन्नपूर्णा है औरत,
सच है कि इस संसार मे पूर्ण है औरत…
कभी अपने आप को ही अर्पण है औरत,
कभी गृह लक्ष्मी तो कभी अन्नपूर्णा है औरत,
सच है कि इस संसार मे पूर्ण है औरत…
anju singh
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