07 दिसंबर, 2010

मुआवजे की आस ताकते भोपाल गैस पीड़ित

साल दर साल बीते गए और बीते 2-3 दिसम्बर को भोपाल गैस त्रासदी की 26वीं बरसी की झलक भी अखबारों में और न्यूज चैनलों में देखी गई। कहने को तो... इस गैस त्रासदी को 26 साल हो चुके हैं, मगर पीड़ितों को उनका हक और हर्जाना देने के नाम पर आज भी रस्मादागी ही चल रही है। देश की सबसे बड़ी इस गैस त्रासदी पर गैस पीड़ितों ने तो अमेरिका से लेकर भारत और मध्य प्रदेश सरकार को जमकर कोसा। ‘‘वैसे गैस कांड पीड़ित इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते हैं। इन पीड़ितों को शायद यह पता नहीं कि वो कोई देश के सांसद नहीं है, जो संसद में हंगामा करें और अपनी उस पीड़ा का हर्जाना ले सके, जो वो और उनकी नई पीढ़ी शारीरिक विकलंागता के रूप में झेल रही है।’’ 26 सालों से लगातार अपने हक की लड़ाई लड़ने और गैस कांड के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन को सजा दिलाने की जद्दोजहद में लगे हैं। बेशक देश और सरकार भूल जाए, लेकिन भोपाल कैसे भूल सकता है 26 साल पहले दो-तीन दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड संयंत्र से जो जहरीली गैस रिसी उसने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था और वहीं हजारों लोग जहरीली गैस से उत्पन्न बीमारियों से जूझने को विवश हैं।

आखिर कब दिया जाएगा मुआवजा?
   कम नहीं होते 26 साल। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी अगर सरकार मुआवजा राशि देने पर विचार विमर्श करें तो यह बेहद शर्म की बात है कि जिस गैस कांड में 5000 हजार से ज्यादा की जान गई, हजारों बच्चे, बूढ़े, जवान और महिलाएं विकलांग हुई और अभी तक बस इनके नासूर बने जख्मों पर मरहम लगाने की तैयारी चल रही है। आखिर ये कैसी सरकारनीति है? 1984 में इस कांड के लिए मुआवजे को 750 करोड़ रूपए थी, पता नहीं उसमें से कितना मुआवजे के नाम पर पीड़ितों में बाताशे तरह दिया गया है। मतलब मुआवजा भीख की तरह जिन हाथों में दिया गया उनमें पीड़ितों के हाथ भी कम थे। अब केंद्र सरकार गैस कांड पीड़ितों के लिए मुआवजा दुगुना करने की मांग की जा रही है, मगर इसे ‘जले पर नमक झिड़काना’ कहा जाता है। एक तो इन ढाई दशकों में मुआवजा पीड़ितों तक कट-छटकर पहुंचा है, स्वास्थ्य सुविधएं भी बीमार दी गई है वहां पर अगर मुआवजा दुगुना करने की बात आए तो इसे सिर्फ इसी कहावत के आंका जा सकता है। बेशक, भारत सरकार द्वारा इस भयावह गैस कांड के पीड़ितों के लिए मुआवजे की दुगुना रकम बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं। मगर इस पर आम लोगों और गैस कांड पीड़ितों को विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है।
            खैर, भोपाल गैस कांड की इस 26 साल पुरानी भयावह त्रासदी के बाद भी गैस पीड़ितों को अफसोस, गुस्सा और उम्मीद तीनों ही है। जहां उन्हें अफसोस है कि देश में इतनी बड़ी दुर्घटना होने के समय से लेकर अब तक कोई ऐसा निर्णय नहीं लिया, जिससे पीड़ितों को राहत मिली हो, बोलवचन और जबानी महरम के साथ कुछ मुआवजा बांट कर जिम्मेदारी पूरी कर दी गई है। जबकि गुस्सा है कि इस त्रासदी के जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी ‘वारेन एंडरसन’ को सजा न मिलने की और उम्मीद है कि देर से सही लेकिन सरकार भोपाल गैस पीड़ितों रहमत कर उन्हें राहत दे। शारीरिक रूप से बेकर हो चुके गैस पीड़ितों में अभी भी मुआवजे की आस बरकरार हैं।

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