07 दिसंबर, 2010

राजनीति में ‘दलाल’ और ‘जेल’ का ये कैसा बोलबाला?



सपा (समाजवादी पार्टी) में एक बार फिर से आजम खान की वापसी क्या हुई कि मानों अमर सिंह की दुःखती रग पर हाथ रख दिया हो। दर्द की पीड़ा भी ऐसी हुई कि अमर सिंह ने ‘सपा के नेताओं को जेल का रास्ता भी बता दिया।’ दरअसल,  मामला ये है कि पहले तो अमर सिंह ने खुद के लिए ‘दलाल’ जैसे उपाधि झेली और अब सपा में आजम खान की ‘री-एंट्री’ से वह तिलमाला गए हैं। जिसके चलते अमर सिंह ने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और अभी-अभी समाजवादी पार्टी में दुबारा आगमन करने वाले आजम खान को भी सचेत करने का प्रयास किया और कहा कि ‘‘अगर मैंने मुंह खोला तो सपा के कई नेता जेल में होंगे’’। वैसे अमर सिंह द्वारा इस प्रकार की टिप्पणी करना कितना जायज है, ये अमर सिंह का अपना नीजि व राजनीतिक मुद्दा है। क्योंकि आजम खान और अमर सिंह के आपसी मतभेद के कारण ही पहले आजम खान पार्टी से गए और बाद में अमर सिंह भी पार्टी से निष्कासित कर दिए गए थे। मगर अब हवाओं का रूख बदल चुका है और डेढ़ साल के बाद सपा आजम खान का ‘मोस्ट-वेलकम’ कर रही है।
       वैसे अमर सिंह ने 14 साल सपा को अपनी सेवाएं दी है, इसी भावना के साथ उनको यह पता होना चाहिए कि आज सपा की हालत पतली है और भविष्य में सपा को मुस्लिम वोटों का भी टोटा पड़ सकता है। इसी टोटे की भारपाई करने के लिए आजम खान का मान-मनोहार कर सपा ने उन्हें पार्टी में फिर से शामिल किया है। लम्बे समय से आपसी तानातनी में अमर सिंह और आजम खान के बीच जबानी जंग चल रही है। अपने आप को ‘दलाल’ सुने जाने पर अमर सिंह का कहना है कि ‘‘ मैं 14 साल तक मुलायम सिंह की बैसाखी रहा हूं। अगर मैंने मुंह खोला तो सपा के कई नेता जेल की सलाखों के पीछे होंगे और आजम खान को अपने नेता यानि मुलायम सिंह से पूछना चाहिए कि 14 सालों में मैंने कितनी सप्लाई की।’’ अमर सिंह का अपने बचाव में यह बयान देना कुछ हद तक सही कहा जा सकता है। मगर ‘मुह खुला तो सपा के कई नेता जेल की सलाखों के पीछे होंगे’ वाला बयान इनके लिए परेशानी की वजह बन सकता है, क्योंकि एक पार्टी से 14 साल जुड़े होने बाद अगर वो अपने पास सपा नेताओं को जेल भेजने की वजह रखते हैं, तो कहीं ना कहीं वह अप्रत्यक्ष रूप से उन  कारणों में शामिल भी जरूर रहे होंगे और अगर शामिल नहीं है तो चुप क्यों हैं! जनता और पार्टी के हितों से दूर होकर उन्होंने भला क्यों उन नेताओं को बख्श रहा है जिन्हें उनके ही अनुसार, जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिए! वैसे इस समय अमर सिंह उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर लोकमंच के अध्यक्ष हैं।

खैर, अब सोचनीय मुद्दा है कि राजनीतिक पखवाड़े में जबानी जंग में इस तरह के बयान आम हो गए है और आम लोग भी इस तरह की बयानबाजी से वाकिफ हो रहे हैं। बात सिर्फ गलत शब्दों के इस्तेलाल की नहीं बल्कि राजनीति के प्रति निष्ठा और कर्मठता पर सवालिया निशान भी है कि ‘‘जब तक जिस पार्टी में रहो तो, तब तक मुंह में मिश्री को दबाए रखो और जैसे ही पार्टी से अलग हो तो करेला चबाने लगो।’’ जहां एक ओर इस तरह के बयान राजनीति बहस में बदलते देर नहीं लगती है वहीं विपक्षी पार्टियों व आम लोगों का भी ध्यान आकर्षित करती है। मगर अब लगता है कि पार्टी-पार्टी और नेता-नेता की जंग में इस तरह की भाषा का प्रयोग राजनीतिक एजंेडा बन गया है?

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