बीते दिनों पहलवान सुशील कुमार ने ‘विश्व कुश्ती चैंपियनशिप’ जीती तो भारतीय खेल प्रेमियों को खुशी तो हुई पर रज भी। रज की वजह रही सुशील कुमार के माननीय ‘गुरू सतपाल’ का अपमान। जहां सुशील के विश्व कुश्ती चैंपियन बनने का गर्व है, वहीं उसी चैंपियन के प्राथमिक और परम्परागत गुरू सतपाल का गलत तरीके से अपमान करना वाकई देश के लिए शर्म की बात है। शायद हमारे खेल मंत्री एमएस गिल भूल गए कि एक खिलाड़ी के प्राथमिक व पराम्परागत गुरू का सम्मान कैसे किया जाता है? चैंपियनशिप जीतने के बाद पहलवान सुशील कुमार अपने गुरू सतपाल और सरकारी कोच यशवीर के साथ खेल मंत्री एमएस गिल से भेंट करने उनके निवास पर पहुंचे थे और वहीं पर विश्व चैंपियन के साथ फोटो खिंचवाने और जीत का सारा श्रेय लेने के चक्कर में सुशील के गुरू सतपाल का अपमान कर दिया। दरअसल हुआ यूं कि गिल ने फोटो खिंचवाने के लिए सरकार द्वारा नियुक्त राष्ट्रीय कोच यशवीर को आगे आने के लिए कहते हुए सतपाल को हट जानेे का इशारा किया। यहां मुद्दा ये नहीं है कि कोच यशवीर को ही फोटो खिंचवाने के लिए ही क्यों बुलाया, बल्कि मुद्दा ये है खेल मंत्री ने वाहवाही और सुर्खी में आने के लिए विजेता के माननीय गुरू का अपमान किया। एक शिष्य बेशक विश्व विजेता बन जाएं, लेकिन वो अपने गुरू के सामने हमेशा शिष्य ही रहता है और अगर उसी शिष्य के सामने उसके गुरू के साथ अपमानजनक तरीका अपनाया जाए तो खिलाड़ी का हौंसला बुलंद नहीं हो सकता। वैसे भी ‘जहां गुरू का अपमान हो वहां भला सम्मान कैसे हो सकता है?’ गिल ये कैसे भूल सकते हैं कि बेशक सुशील कुमार ने कोच यशवीर की उपस्थिति में विश्व चैंपियनशिप जीती हो, मगर उस चैंपियन की बुनियाद तो सतपाल ने ही रखी है और सुशील कुमार के आज विजेता होने के पीछे बीते कल और आज में सतपाल की मेहनत को कम नहीं आंका जा सकता। ऐेसा नहीं है कि सुशील के गुरू सतपाल कोई गुमनाम नाम हैं, बल्कि वे खुद 1982 एशियाई खेल में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं और बीते वर्ष उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार से भी नवाजा गया था। इससे बड़ी बात ये है कि खुद सुशील कुमार का कहना ये है कि बचपन से पहलवानी के गुर सिखाने वाले प्राथमिक गुरू सतपाल की वे बहुत इज्जत करते हैं और उनकी श्रद्धा करते हैं, तो इस पर तो खेल मंत्री का कुछ कहना बनता भी नहीं है।
बहरहाल, देश में खिलाड़ियों को मांजने और निखरने से ज्यादा मीडिया में छाने और वाहवाही लुटने की रहती है। उक्त उदाहरण इसके लिए काफी है। अगर खेल मंत्री के रवैये के विपरीत देखें तो पता चलेगा कि बुनियादी और प्राथमिक प्रयासों से जितने खिलाड़ी सफल हुए हैं उनमें से बेहद कम सफल रहे हैं, सरकारी तंत्र से बने खिलाड़ी। क्षमता और विशेषता को आंककर गुरू उन्हें विशेष खेल के खिलाड़ी बनाते हंै सतपाल जैसे गुरू। भारत में क्षमता, विशेषता के बीच खिलाड़ियों की कमी नहीं है, फिर भी युवाओं से लबरेज देश में चुनिंदा खिलाड़ी ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाए हुए हैं, वे अपने बल बदौलत बनाएं हैं न कि सरकारी रहमोकरम पर। सरकार के ढूलमूल रवैये के कारण ही प्रतिभाएं उभर नहीं पाती हैं। अच्छा होगा सरकारी खेल तंत्र प्रतिभावान
खिलाड़ियों की खोज करके श्रेय ले, ना कि जिन गुरूओं ने अपने शिष्यों को आज चमकने लायक बनाया है उनका अपमान करे।
नमस्कार जी, मैं हूं अंजू सिंह, अभी तक का बस मेरा परिचय इतना ही है। मेरा ब्लाग जैसे नाम से पता चल गया होगा ‘कुछ खास तो नहीं’ बस यही सच है। साधारण सोच के साथ लिखना शुरू किया है और साधारण सोच को शब्दों में बदलना चाहती हूं। सामाजिक और जनचेतना से जुड़े सवालों पर सवाल करना मुझे पसंद है। स्वभाव से कुछ कठोर और बातों से लचीली हूं, फिर भी सबकी सोच को सुनना मुझे रास आता है। अगर आप मेरे लेख को झेल पाएं तो मेरी लेखनी को दम मिलेगा और नहीं झेल पाए तो मुझे और साधारण रूप से लिखने का दम भरना पड़ेगा...
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