वैसे तो... काॅमनवेल्थ्स गेम्स 15 अक्टूबर को खत्म हो चुके हैं, पर अभी तक काॅमनवेल्थ गेम्स का शोर कम नहीं हुआ। एक ओर काॅमनवेल्थ की सफलता का बोलबाला है और दूसरी ओर काॅमनवेल्थ का घोटला है। कुछ भी हो पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काॅमनवेल्थ की सफलता ने भारत की छवि को कलंकित होने से बचा ही लिया और यह भी साबित कर दिया कि काॅमनवेल्थ की सफलता में उभरती भारतीय आर्थिक-व्यवस्था, समृद्धि और विकासशीलता का बड़ा योगदान है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश चमक गया और एक भारतीय होने पर इस समय हर भारतवासी को नाज होगा और होना भी चाहिए। भई, इतनी बड़ी जिम्मेदारी के मेजबानी करना कोई मुंह में पान दबाने जैसा आसान काम तो था नहीं। मगर...अफसोस ये है कि काॅमनवेल्थ की जरूरत व उसकी सफलता ने अपने पीछे कई सवाल छोड़े हैं!
हैरानी की बात है जब लगभग पूरा देश काॅमनवेल्थ गेम्स के गुणगान कर रहा था। उसी दौरान आया एक सर्वे काफी चैंकाया वाला था, दरअसल सर्वे कुछ यूं था ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2010 में भारत को 67 वां स्थान है’ और उसपर सोने पर सुहागा ये था कि ‘भुखमरी में भारत, चीन 9 वें स्थान और पाकिस्तान 52 वें स्थान से भी पीछे है।’ आश्रय साफ है कि चीन को इस सूची में 9 वां स्थान मिलना, भारत से बेहतर स्थिति को दर्शाता है वो भी तब, जब चीन की आबादी भारत से काफी ज्यादा है। पता नहीं इस पर हसी आनी चाहिए या गंभीर होना चाहिए। क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे शक्तिशाली देशों की सूची में भारत का नंबर-3 है और भुखमरी में 84 देशों की इस सूची में भारत का नंबर 67! ये कैसा शक्तिशाली देश है जो शारीरिक रूप से
भूखा, कमजोर और कुपोषित है! ये कैसा अमीर देश है जहां 45 करोड़ गरीब भूखे सोते हैं! सोचो जरा... कि हम अमीर देश की गरीब जनता है जिनकी स्थिति दशकों से नहीं बदली! जबकि इस भुखमरी के लक्षित रोग कुपोषण, शिशु मृत्यु दर जरूर विकराल होती जा रही है...!
देश में काॅमनवेल्थ की जरूरत थी... तो जो काम राजधानी में 4 पहले होने चाहिए थे, वो 4 महीने में पूरे किए गए...! दिल्ली को नई-नवेली दुल्हन की तरह महज आखिरी कुछ दिनों में सजा दिया...! बारीक अनुमान, तो वैसे कुछ और ही माने जा रहे हैं पर मोटा अंदाजा ये है कि काॅमनवेल्थ में करीब 70,000 करोेड़ रूपए खर्च किए गए...! 71 देशों के 6000 खिलाड़ियों के लिए सैंकड़ों वैरायटी खाने में परोसी गई, उच्च नहीं सर्वोच्च स्तर की सुविधाएं भी काबिले तारीफ थी। वैसे ‘काॅमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी करना देश की एक सकारात्मक उपलब्धि है’, जबकि देश का ‘भुखमरी में 67 वां स्थान पर पाना दूसरी अनचाही उपलब्ध् िहै...!’ काॅमनवेल्थ की सफलता के बाद भी क्या ये मान लिया जाए कि देश में रोजाना करीब 5000 बच्चों का कुपोषण और भूख की भेंट चढ़ना सही है? अब तो ये भी नहीं लगता की देश आर्थिक रूप से कमजोर है और ना ही ये लगता है देश में अनाज कमी है! बल्कि कमी है जरूरत को तवज्जो देने की? और जरूरतों को प्राथमिकता देने का श्रेष्ठ उदाहरण यही हो सकता है कि जहां हर साल लाखों टन अनाज जगह के अभाव, आर्थिक व्यवस्था, अनदेखी और लापरवाही के भंेट चढ़ता। उसी के चलते हर साल करोड़ लोग भुखमरी से मरते हैं। ठोस व्यवस्था के अभाव में साल-दर-साल की यही कहानी है। किंतु वहीं सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता...क्योंकि प्राथमिकता का गहन अध्ययन कर ‘कुछ दिन की शान के लिए अरबों की कीमत के स्टेडियम तैयार करना और दिल्ली को फिर पुर्ननिर्माण करना ज्यादा सस्ता हैं।’
खैर, काॅमनवेल्थ की सफलता के जश्न में हम भी शामिल हैं, पर बस एक भारतीय होने नाते, ना की देश के एक आम नागरिक होने के नाते... क्योंकि इस समय, इस बात से बिलकुल इंकार नहीं किया जा सकता है कि जब देश में काॅमनवेल्थ की सफलता के तालियां बजायी जा रही थी, तभी देश में भुखमरी का तमाचा भी मरा गया था, वो बात अलग है कि इस तमाचे आवाज और सूजन पर अभी तक किसी का ज्यादा ध्यान नहीं गया है!
नमस्कार जी, मैं हूं अंजू सिंह, अभी तक का बस मेरा परिचय इतना ही है। मेरा ब्लाग जैसे नाम से पता चल गया होगा ‘कुछ खास तो नहीं’ बस यही सच है। साधारण सोच के साथ लिखना शुरू किया है और साधारण सोच को शब्दों में बदलना चाहती हूं। सामाजिक और जनचेतना से जुड़े सवालों पर सवाल करना मुझे पसंद है। स्वभाव से कुछ कठोर और बातों से लचीली हूं, फिर भी सबकी सोच को सुनना मुझे रास आता है। अगर आप मेरे लेख को झेल पाएं तो मेरी लेखनी को दम मिलेगा और नहीं झेल पाए तो मुझे और साधारण रूप से लिखने का दम भरना पड़ेगा...
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