25 अप्रैल, 2011

श्रद्धा के नाम पर ये कैसा मायाजाल?


भोली सूरत दिल के खोटे, नाम बड़े और दर्शन छोटे... ऐसा मेरे लिखने का विचार तो बिलकुल भी नहीं था, पर लिखने पर मजबूर हूं। संभव है कि यह लेख विवादों का आधार बन सकता है... पर जो मैंने देखा और अनुभव किया है जरा आप भी ये अनुभव करके देखो... 24 अप्रैल 2011 को करीब एक महीने शारीरिक बीमारी को झेलते हुए अध्यात्मिक गुरू सत्य साईं ने आखिरी सांस ली, आमतौर पर किसी भी साधारण या असाधारण व्यक्ति का निधन होना कभी भी खुशी का विषय नहीं हो सकता है, लेकिन वो कुछ सवालों, जवाबों और विवादों का मामला जरूर बन जाता है। बस कुछ ऐसा ही लग रहा है सत्य साईं बाबा का मामला ? वैसे तो बाबा अपने श्रद्धालुओं के बीच काफी चर्चित हैं, लेकिन कुछ समय से इनके चर्चाओं का बाजार खूब तेज चल रहा है। कभी इलाज, कभी अस्पताल, कभी दवाई और कभी उनपर पर सबकुछ बेकार...! देश-विदेश में रहने वाले लाखों श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र माने जाने वाले सत्य साईं बाबा के अंतिम सांस लेने के साथ दुःखभरी और नमीभरी आह भी देशभर में निकल गई। क्या नेता? क्या अभिनेता? क्या खिलाड़ी और क्या आम जनता? ज्यादातर श्रद्धालुओं का कहना है कि ‘बाबा सत्य साईं के निधन को देश की बहुत बड़ी हानि है।’ वैसे गजब का शोक था कि सभी न्यूज चैनलों पर बाबा ही बाबा छाए रहे... अब देखिए कुछ ऐसा ही होता है ‘ह्यूमन नेचर’!
दरअसल, सत्य साईं बाबा मीडिया के संग-संग आम लोगों के बीच इतने चर्चा आ रहे थे कि आम लोगों के बीच मेरी मानसिकता भी कुछ ऐसी हो रही थी। इसके चलते मुझे उत्सुकता हुई कि बाबा के बारे में कुछ और जानकारी जुटाई जाए... यानी उनके व्यक्तित्व और चमत्कार के कुछ दर्शन कर लिए जाएं... सो मैं बैठ गई नेट पर और बाबा से संबंधित कुछ नोट्स और वीडियो खोजने। अब इसे मेरी अच्छी किस्मत कहें या बुरी, क्योंकि पहली वीडियो देखी तो लगा कि जो मैं इतने दिनों से सोच रही थी वो वास्तव में इतना सच्चा नहीं जितना कि उसे दिखाया और बताया जा रहा है। अब मुझे ये तो नहीं पता कि वो वीडियो के साथ किसी ने खुरापात की है या नहीं ? पर जो उसमें दिखा उसपर पर सजह विश्वास किया जा सकता है... मात्र एक वीडियो ने सभी सवालों पर और भी सवाल खड़े कर दिए कि ‘‘वाह रे भारत और वाह रे भारतवासी!’’ वाकई हम भारतीय आस्था के मामले में बहुत भावनात्मक है। उस वीडियो में साफ दिखाया गया है कि बाबा ने किस तरह बार-बार अपने हाथों की सफाई का इस्तेमाल किया है, इससे तो यह भी पता चलता है कि बाबा के पास कोई शक्ति नहीं बल्कि हाथों की सफाई और नजर को धोखा देने का मंत्र हैं। वे गजब के जादू प्रदर्शनकारी हैं, बेहद बढि़या अंदाज और मामूली फेरबदल करके सबकी आंखों में धूल झोंक रहे थे और किसी को कुछ पता ही नही...
खैर, छोड़ो ये सवाल बहुत हुए और अब हम रूख करते है कुछ ऐसे सवालों की ओर जिससे कि बाबा के श्रद्धालुओं की नाराजगी होना लाजिमी है... माना वह साईं बाबा के अवतार है, तो इन आधुनिक सत्य साईं बाबा के पास हजारों करोड़ की संपत्ति कहां से आई! माना उन्होंने कई अस्पताल, स्कूल और संस्थाएं बनवाएं, फिर भी आम जनता की सेवा में भला करोड़ों की आमदनी और उसकी बचत कैसे संभव है! चलो ठीक है, साईं के अवतार हैं, पर हैरानी है कि खुद को साईं का अवतार करने वाले सत्य साईं ने साईं जैसी जीवन शैली नहीं अपनाई! चर्चा तो इस बात की भी ज्यादा है कि बाबा बचपन से ही चमत्कार करते थे, हवा से तरह तरह के चमत्कारों से श्रद्धालुओं को चकित किया है, अपने छोटे से मुंह से औसतन बड़े-बड़े सोने के अंडानुमा सोना उगलते हैं, हाथों से गोल-गोल घुमाकर विभूति और सोने की चेन तक निकालते हैं। मगर बाबा ने अपने इस चमत्कार यानी सोना उगलने वाली शक्ति का बस मीडिया में छाने का तरीका बनाया ना कि गरीबों की गरीबी दूर करने का रास्ता बनाया! आप जरा सोचो, सच्चे साईं बाबा तो सबके अंदर अपने आप को देखते थे और हर प्राणी उनके लिए साईं था, मगर यहां तो उल्टा है। भाई साहब, ये सत्य साईं तो अपने आप को साईं बोल रहे हैं...! अब और क्या क्या कहूं जरा नीचे लिखी कुछ इन पक्तियों भी थोड़ा गौर करिये...

सोचो और समझो...
एक ‘साईं बाबा’ रहे जीवन भर बस एक ‘फकीर’
जबकि ‘सत्य र्साइं बाबा’ बने आज के ‘अमीर’...
एक सांई का घर मात्र रहा ‘द्वारका माई’
जबकि दूसरे के ‘वास में खूब वैभवता’ छाई...
एक ने ‘सबका मलिक एक है’ का गान गाया...
जबकि दूसरे ने खुद को ही ‘साईं ’ बताया...
एक साईं ने ‘अपनी-मृत्यु’ खुद की बताई पाई
जबकि सत्य साईं ने ‘वक्त’ से पहले ली विदाई...
एक ने अपनी विरासत में छोड़ी ‘श्रद्धा और सबूरी’
जबकि दूसरे की विरासत रह गई बिना ‘अधिकारी’...

देखिए, माफी चाहती हूं उन सत्य साईं बाबा के श्रद्धालुओं से जो इनकी श्रद्धा करते हैं। किसी की भावना को ठेस लगाने का मेरा कोई विचार नहीं था। मैं भी शक्ति पर विश्वास करती हूं, लेकिन खुद की नंगी आंखों से देखी गई शक्ति पर ही विश्वास किया जाए तो बेहतर है।

1 टिप्पणी:

  1. अंजू..
    कुछ लिखने से पहले बता दू में इनका अनुयायी नहीं हूँ..
    आप ने कहा इनकी हाथ की सफाई के बारे में,मैंने देखा नहीं मगर उम्मीद करता हूँ की INDIA TV जैसे घटिया चैनेल की खुराफात होगी ये ..और हजारो करोणों की संपत्ति तो हाजी याकूब (एक बिधायक जिसकी बेटे की सदी में ४५० करों खर्च हुआ) भी है...चलो साईं ने कुछ लोगों का तो भला किया होगा..कुछ लोगो को तो बुनियादी सुविधाए मुहय्या करायी..जो सरकार असीमित धन होने के बाद भी नहीं कर पाई..
    और अगर में मन लूँ की वो स्वामी भ्रष्ट भी था तो अंजू बहन कम से कम उसने हजारो लाखों हिन्दुओं को इसाई और मुश्लिम बनने से रोक लिया जैस उड़ीसा में रोज हो रहा है..इसके लिए तो में साईं के चरणरज को मस्तक से लगाऊंगा ही..
    सुन्दर विवेचना लिखती रहो

    आशुतोष की कलम से....: मैकाले की प्रासंगिकता और भारत की वर्तमान शिक्षा एवं समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव :

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